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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ९. राग ललित =*
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(४)
*तुम प्रभु दीन दयाल मुरारी ।*
*दुःख हरण दालिद्र निवारण, भक्त बछल संतनि हितकारी ॥(टेक)*
हे प्रभो ! हे दीनों पर दया करने वाले ! हे मुरारि ! आप तो दुःखों के हर्ता, दरिद्रता के मिटाने वाले, भक्तों पर पुत्रवत् स्नेह रखने वाले तथा साधु सन्तों का सर्वथा हित करने वाले हैं ॥टेक॥
*जे जे तुम कौं भजत गुसांई, तिन तिन की तुम बिपति निवारी ।*
*आप सरीषे करिकैं राषो, जनम मरन की संका टारी ॥१॥*
हे प्रभो ! आपका जिस जिस भक्त ने भजन किया, उस उस के संकट आपने अवश्य दूर कर दिये । तथा उसको अपने जैसा समर्थ बना लिया और उसके चित्त में जन्म - जन्मान्तर से प्रवाहित जन्म-मरण परम्परा के भय का निवारण कर दिया ॥१॥
*बार बार तुम सौं कहा कहिये, जानराइ भय भंजन भारी ।*
*सुन्दरदास करत है विनती, मोहू कौं प्रभु लेहु उबारी ॥२॥*
अतः अब आपसे बार बार एक ही बात क्या कही जाय, आप अन्तर्यामी हैं, सुन के मन की बात जानते हैं । आप सब का भय मिटाने वाले हैं । अतः श्रीसुन्दरदासजी भी आपसे यही विनति(नम्र प्रार्थना) करते हैं कि मेरा भी इस संसार से उद्धार कर दीजिये ॥२॥
(क्रमशः)
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