卐 सत्यराम सा 卐
*दादू मारग कठिन है, जीवित चलै न कोइ ।*
*सोई चलि है बापुरा, जो जीवित मृतक होइ ॥*
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साभार ~ Atul Solanki
*तुम शायद थक चुके हो, लेकिन जीवन की लालसा अभी बाकी है*
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एक बूढ़ा लकड़हारा जंगल से लौट रहा था। एक बड़ा भारी लकड़ियों का गट्ठर अपने सर में रखा हुआ था।
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वह बहुत बूढ़ा था, थक गया था न केवल रोज-रोज के काम काज से थक गया था जीवन से ही थक गया था। जीवन का कोई बहुत मूल्य न रह गया था उसके लिए। जीवन एक थकान भरी पुनरुक्ति था। रोज़-रोज़ वही सुबह जंगल जाना, दिन भर लकड़ियाँ काटना, फिर सांझ गट्ठर लेकर शहर आना। और उसे कुछ याद न था। यही उसका कुल जीवन था।
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वह ऊब गया था। जीवन उसके लिए बेकार था विशेषकर उस दिन वह थका हुआ था,पसीना बह रहा था, सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था, गट्ठर का बोझ उठाये वह किसी तरह घसीट रहा था।
अकस्मात, जैसे जिन्दगी का बोझ फेंक रहा हो, उसने अपना गट्ठर नीचे पटक दिया। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक घड़ी आती है, जब व्यक्ति सारा बोझ फेंक देना चाहता है। केवल सर पर रखा वह गट्ठर ही नहींल प्रतीक है। उसके साथ वह पूरा जीवन ही फेंक देता है।
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वह घुटनों के बल जमीन में गिर पड़ा,आकाश की तरफ उसने आँखे उठाई और कहा, हे मौत !! तू हर आदमी को आती है, लेकिन तू मुझे क्यों नही आती? और कितने दुःख देखने है मुझे? अभी और कितने बोझ ढ़ोने हैं मुझे? क्या मुझे काफी सजा नहीं मिल चुकी?
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उसे अपनी आँखों में भरोसा ही नही आया अचानक, मौत प्रगट हो गई। उसने चारो तरफ देखा,बहुत चकित रह गया। जो वह कह रहा था, वो उसका इरादा बिलकुल नहीं था। और उसने कभी ऐसा सुना भी नही था कि तुम बुलाओ मृत्यु को और मृत्यु आ जाये। और मृत्यु ने कहा, ‘क्या तुमने मुझे बुलाया’?
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वह बूढ़ा अचानक सारी थकान, सारी ऊब, मुर्दा पुनरुक्ति भरी जिंदगी की सब बात भूल गया। वह उछ्ल पड़ा और उसने कहा - हाँ-हाँ मैंने बुलाया था तुम्हें। क्या तुम इस गट्ठर को उठाने में जरा मेरी मदद करोगी? यहाँ किसी को अपने आस-पास न देखकर मैंने तुम्हें बुलाया था।
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ऐसी घड़ियाँ होती है जब तुम थक जाते हो जीवन से। ऐसी घड़ियाँ होती है जब तुम मर जाना चाहते हो। लेकिन मरना एक कला है; इसे सीखना पड़ता है। और जीवन से थकने का अर्थ सच में ही यह नही होता कि गहरे में जीवन के प्रति तुम्हारी लालसा मिट चुकी हो। तुम शायद थक चुके हो किसी एक ढंग के जीवन से, लेकिन तुम जीवन मात्र से नहीं थके हो।
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हर कोई थक जाता है एक ही ढांचे से, वही रोज़-रोज़ थकान भरा चक्कर, वही पुनरुक्ति, लेकिन यदि मौत आ जाये तो तुम भी वही करोगे जो उस लकड़हारे ने किया। उसने एकदम मनुष्य की भांति व्यवहार किया। उस पर हँसो मत। बहुत बार तुमने भी सोचा है कि खत्म करें इस अंतहीन बकवास को।
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किसलिए चलाये रहे इसे? लेकिन यदि मृत्यू अचानक तुम्हारे सामने आ जाये तो तुम तैयार नहीं होगे।
ओशो
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