शनिवार, 29 सितंबर 2018

= पीव पिछाण का अंग ४७(३३/३६) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*काया शून्य पंच का बासा, आत्म शून्य प्राण प्रकासा ।*
*परम शून्य ब्रह्म सौं मेला, आगे दादू आप अकेला ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
*पीव पिछाण का अंग ४७*
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सगुण निगुर्ण एक है, तो झगड़ा कछु नाँहिं । 
पै हथलेवा कर दाहिने, देखो ब्याव सु माँहिं ॥३३॥ 
सगुण और निर्गण दोनो एक हैं तब विवाद भी कुछ नहीं रहता किन्तु दोनों हाथ एक से होने पर विवाह के समय हथलेवा का संस्कार तो दाहिने हाथ से ही होता है, वैसे ही मुक्ति के समय तो निर्गुण को ही अपनाना पड़ता है । 
आदि नारायण सत्य है, निगम१ पुकारहिं चार । 
तो साधों को क्या कहो, पंडित पढ़ सु विचार ॥३४॥ 
आदि नारायण ही ब्रह्म ही सत्य है, ये चारों ही वेद१ पुकार करके कहते हैं, हे पंडित ! तुम संतों को ही क्या कहते हो कि - ये सगुण उपासना नहीं करते, उन चारों वेदों को पढ़कर भली प्रकार क्यों नहीं विचारते, वे भी तो निर्गुण उपासना बताते हैं । ३२-३४ में पंडित को संबोधन किया है इससे ज्ञात होता है कि इस अंग के बहुत से पद्य किसी पंडित से चर्चा करते समय कहे हैं । 
काया कुंभ जीव जल दर्शे, शशि सूरज प्रतिबिम्ब । 
घटा फूटे दिन कर गये, आभासत१ अरु अंब२ ॥३५॥ 
जैसे घड़े में जल दिखता है तब तो उसमें चन्द्र सूर्य का प्रतिबिम्ब भी दिखाई देता और घट फुटते ही उसमें से चन्द्र सूर्य के प्रतिबिम्ब भी चले जाते हैं और जल१ भी नहीं भासता२ वैसे ही शरीर में सूक्ष्म शरीर रूप जीव होता है तब तो ब्रह्म चेतन का प्रतिबिम्ब रूप आत्मा भी भासता है और शरीर नष्ट होने पर न तो आत्मा भासता और न सूक्ष्म शरीर भासता है, अत: ब्रह्म ही सत्य है । 
अर्क१ आरसी उर उदय, अग्नि अपरबल२ अंग३ । 
रवि रेजे४ रवि ही मिलै, जन रज्जब जब भंग५ ॥३६॥ 
दर्पण में सूर्य१ का प्रतिबिम्ब उदय होकर भास रहा हो उसी समय प्रचंड२ अग्नि से से दर्पण टूट५ जाय तब प्रतिबिम्ब रूप सूर्य के टुकड़े४ होकर नष्ट होता सा दिखाई देता है किन्तु वे टुकड़े नष्ट न होकर सूर्य से ही मिल जाते हैं वैसे ही अन्त:करण में ब्रह्म का प्रतिबिम्ब आत्मा भास रहा है किन्तु प्रचंड ज्वर से शरीर३ छिन्न भिन्न होने के समय आत्मा भी छिन्न भिन्न होता सा ज्ञात होता है परन्तु वह छिन्न भिन्न नहीं होता व्यापक ब्रह्म में ही मिलता है । अत: ब्रह्म का भासने वाला प्रतिबिम्ब भी अखंड है तब ब्रह्म अखंड है इसमे तो कहना ही क्या है ? इससे नष्ट होने वाले सगुण शरीर ब्रह्म सिद्ध नहीं होते ।
(क्रमशः)

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