#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= ९. राग ललित =*
.
(३)
*अब हूं हरि कौं जाचन आयौ ।*
*देषे देव सकल फिरि फिरि मैं, दालिद्र भंजन कोउ न पायौ ॥(टेक)*
अब मैं प्रभु से भिक्षा माँगने आया हूँ । क्योंकि मैंने अन्य सभी देवी-देवताओं के द्वार जा जाकर देख लिया कि उनमें से किसी में भी किसी की दरिद्रता नष्ट करने का सामर्थ्य नहीं रह गया है ॥टेक॥
*नाम तुम्हारौ प्रगट गुसांई, पतित उधारन बेदन गायौ ।*
*ऐसी साषि सुनि संतनि मुष, देत दान जाचिक मन भायौ ॥१॥*
परन्तु इस दरिद्रता निवारण में आपका नाम लोकप्रसिद्ध है । वेदों ने भी आपकी स्तुति 'पतित उधारन' नाम से ही की है । तथा सन्तों के मुख से आपकी ऐसी ही प्रशंसा सुनी है । वे भी यही कहते हैं कि आप याचक को मुँहमाँगा दान करते हैं ॥१॥
*तेरै कौंन बात कौ टोटौ, हौं तौ दुख दलिद्र करि छायौ ।*
*सोई देह घटै नहिं कब हौं, बहुत दिवस लग जाइ न षायौ ॥२॥*
आपके यहाँ किस बात का टोटा(कमी) है । फिर मुझको तो दरिद्रता ने चारों ओर से घेर रखा है, अतः आप जो दे देंगे वही मेरे लिये बहुत होगा । उसका मैं बहुत दिन उपयोग करके भी(उसका) अन्त नहीं कर पाऊँगा ॥२॥
*अति अनाथ दुर्बल सब ही बिघि, दीन जानि प्रभु निकट बुलायौ ।*
*अंत:करण उमगि सुन्दर कौ, अभैदान दे दुःख मिटायौ ॥३॥*
'मैं तो सब ओर से, सर्वथा दीन, हीन, अनाथ एवं दुर्बल हूँ' - यही जानकार आपने अपने द्वार पर मुझको बुलाया है ।
महात्मा श्रीसुन्दरदास कहते हैं - अतः हे प्रभो ! मेरे मन में आपके द्वार पर आने की प्रबल इच्छा(उमंग) हुई और मैं आपके द्वार पर चला आया । अतः कृपया मुझे अभयदान देकर मेरे सब दुःखों का अन्त कीजिये ॥३॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें