#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ११. राग देवगन्धार =*
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(२)
*अब तौ ऐसैं करि हम जांन्यौ ।*
*जो नानात्व प्रपंच जहांलौं मृगतृष्णा कौ पांन्यौ ॥(टेक)*
अब हमने गुरुदेव के उपदेशों द्वारा यह जाना कि यह जगत् का समस्त नानात्व विस्तार मृगतृष्णा के जल के समान मिथ्या है ॥टेक॥
*रजु कौ सर्प देषि रजनी मैं भ्रम तैं अति भय आंन्यौ ।*
*रवि प्रकाश जब भयौ प्रात ही रजु कौ रजु पहिचांन्यौ ॥१॥*
कभी मैं रज्जु को भ्रम से सर्प समझकर अतिशय भय मान बैठा । परन्तु सूर्य का प्रकाश होने पर उस रज्जु का यथार्थ(रज्जुत्व) समझ पाया ॥१॥
(क्रमशः)
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