मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

= पीव पिछाण का अंग ४७(९३/९६) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू अविनाशी अंग तेज का, ऐसा तत्त्व अनूप ।*
*सो हम देख्या नैन भरि, सुन्दर सहज स्वरूप ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
*पीव पिछाण का अंग ४७*
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सींगी१ पूंगी बाँसुली२, बाजहि कुंभ सु भौन३ । 
सहनाई शंख भेरी नफीरी४, नाद जु बाईक पौन ॥९३॥ 
मृग सींग१, सपेरे की पूंगी, वंशी२ घर३ में वायु से बजने वाला खाली घड़ा, शहनाई, शंख, भेरी, तुरही४, इन सबकी आवाज तथा मुख की वर्णात्म-ध्यान्यात्म आवाज, रूप रहित वायु द्वारा ही निकलती है और सींगी आदि की सहायता से रूप रहित पहचाना जाता है तथा उस स्वर के सुनने में ही सबका प्रेम होता है, वैसे ही रूप रहित निर्गुण ब्रह्म ही सबका कारण है, सब कार्य के द्वारा उस निर्गुण को जाना जाता है और जानने पर उसी में सबका रंग होता है । अत: निर्गुण ब्रह्म ही उपास्य है । 

विहंग बांग घड़ियाल सु नोबत, सहनाई सुन बात ।
शरीर स्वभाव श्रृंगारों समझे, सप्त भांति परभात ॥९४॥ 
पक्षियों की, मुल्ला की बांग की, मंदिरों के धड़ियालों की, नौबत की, शहनाई की आवाज तथा मनुष्यों की बातें और शरीर का स्वभाव श्रृंगार इन सातों प्रकार से समझ जाता है कि प्रभात होने होने वाला है, वैसे ही षट् प्रमाणों से और अनुभव से समझा जाता है कि ब्रह्म साक्षात्कार होने वाला है । 
षट् दर्शन षट् पंथ शास्त्र, गैवी माग सु मांहिं । 
सप्तों चलता देखिये, सांई शहर सु जाँहिं ॥९५॥ 
१.जैमिनी कृत पूर्व मीमांसा, २.गौतम कृत न्याय, ३.कणाद कृत वैशेषिक, ४.पंतजली कृत योग, ५.कपित कृत सांख्य, ६.व्यास कृत वेदांत, ये षट् दर्शन तथा १.नाथ, २.जंगम, ३.सेवड़े, ४.बौद्ध, ५.सन्यासी ६.शेष ये षट् पंथ और अनुभव सातों मार्ग पर ब्रह्मरूप शहर में ही आते हैं अर्थात ब्रह्म का ही कथन करते हैं । 
कोई आया कूद कर, कोउ बांध कर पाज । 
रे रज्जब लंका लई, कीया अपना राज ॥९६॥ 
हनुमानजी कूद कर लंका में गये और रामचन्द्रादि समुद्र पर सेतु बाँध कर गये किन्तु पहुँचे सब लंका में, सभी ने लंका को प्राप्त करके अपना राज्य स्थापन किया, वैसे ही अनुभवी हनुमानजी समान और षट् दर्शन तथा षट् पंथ अपने अपने विचार रूप मार्गो से ही ब्रह्म को ही प्राप्त करते हैं ।
(क्रमशः)

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