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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ११. राग देवगन्धार =*
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(३)
*देव इन्द्र बिधि शिव बैकुंठहिं ये पद ग्रंथनि गांना ।*
*जीवत पद सौं परचै नाहीं मूये पद किन जांना ॥२॥*
यद्यपि शास्त्र में अन्य पदों का भी स्थान स्थान पर वर्णन है; जैसे - देवपद, इन्द्रपद, ब्रह्मपद, शिवपद, वैकुण्ठपद ।
*पद प्रसिद्ध पूरण अविनाशी पद अद्वैत बषांना ।*
*पद है अटल अमर पद कहिये पद आनन्द न छांना ॥३॥*
आज जब जीवित व्यक्तियों को ही लोक नहीं पहचानते, तो मरने पर कौन किस को पहचानता है ॥३॥
*पद षोजे तें सब पद बिसरै बिसरै ज्ञान रु ध्याना ।*
*पद कौ तात्पर्य सो पावै सुन्दर पद हिं समांना ॥४॥*
यह प्रसिद्ध अद्वैत पद सब का पूरक एवं अविनाशी कहा है । यह स्थायी अमर पद है, इसमें कोई परिवर्तन होने वाला नहीं है । इस पद पर पहुँचने पर आनन्द किसी से छिपा नहीं रह सकता ॥४॥
(क्रमशः)
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