#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*पारस किया पाषाण का, कंचन कदे न होइ ।*
*दादू आत्मराम बिन, भूल पड़या सब कोइ ॥*
===============
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
.
*पीव पिछाण का अंग ४७*
.
अधर१ अंभ२ ले मोरड़ी, होय सपूछा मोर ।
सोह मदन३ ले मही४ सौं, सो सुत होय लंडोर५ ॥८९॥
यदि मोरड़ी नृत्य करते हुये मोर की आँख का अश्रुजल२ अपनी चौंच में अधर ही झेल लेती है तब तो उसके पूंछ वाला मोर जन्मता है और वह बिन्दु३ पृथ्वी४ पर पड़ने के पीछे उठाती है तब उससे अपूंछा५ मोर जन्मता है, वैसे ही यदि जीवात्मा माया रहित ब्रह्म१ की उपासना करता है तब तो उसको मुक्तिप्रद अभेद ज्ञान प्राप्त होता है और माया सहित सगुण की उपासना करता है तब दु:खप्रद भेद ज्ञान प्राप्त होता है, अत: निर्गुण की ही उपासना करनी चाहिये ।
.
अधर४ अंभ१ सारंग२ ले, सारे साल संतोष ।
अन्य पंखि पीवहि पुहमि३, तृषा न भागे दोष ॥९०॥
अधर आकाश में स्वाति जल१-बिन्दु को चातक२ पक्षी ग्रहण करता है, उससे उसे वर्ष भर उसे प्यास नहीं लगती, अन्य पक्षी पृथ्वी३ पर पड़ा जल पीते हैं, उनको बारंबार प्यास लगती है चातक के समान नहीं मिटती, वैसे ही माया रहित निर्गुण ब्रह्म४ की उपासना से प्राणी को सदा के लिये संतोष हो जाता है और माया सहित सगुण की उपासना से तृष्णा रूप दोष नहीं मिटता अन्य नहीं तो वैकुण्ठादि लोको की ही इच्छा रहती है ।
.
धर्या१ उपज्या धरे२ सौं, धरे३ सु पावे पोष ।
आतम उपजी अधर४ सौं, अधर५ हिं मिले संतोष ॥९१॥
माया१ के कार्य अन्त:करण इन्द्रियादि माया२ से उत्पन्न हुये हैं, अत: मायिक३ सगुण अवतारों से तथा मायिक पदार्थो से ही अपना पोषण समझकर उनसे ही प्रेम करते हैं किन्तु आत्मा तो माया रहित ब्रह्म४ से प्रतिबिम्ब के समान उत्पन्न हुआ है, अत: उसे माया रहित ब्रह्म५ प्राप्ति पर ही संतोष होता है ।
.
चौरासी में वपु विविध, ओंकार जीव एक ।
सन्या१ शरीरों मिल चल्या, जगपति जुदा विवेक ॥९२॥
अन्य शब्द तो नाना है किन्तु ओंकार एक ही है और आकार, उकार, मकार रूप से सब शब्दों से मिला१ हुआ शब्द संसार में विचरता है, वैसे ही चौरासी लाख योनियों में शरीर तो विविध प्रकार के हैं किन्तु उनमें जीवात्मा एक ही है और वह शरीरों में मिल१कर जगत् में विचर रहा है, विवेक करके देखने से जगत्पति ब्रह्म उक्त दोनों से भिन्न निर्लेप अशरीरी ही सिद्ध होता है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें