#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सजीवन का अँग २६*
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करुणा
दादू जाता देखिये, लाहा मूल गमाइ ।
साहिब की गति अगम है, सो कुछ लखी न जाइ ॥२८॥
भगवद् - विमुख प्राणियों पर दया दिखा रहे हैं - साँसारिक मानवों
का समूह, मनुष्य जीवन रूप मूल तथा
उससे होने वाला भक्ति रूप लाभ, दोनों को ही खोकर विषय -
विकार रूप पाश में बंधा हुआ काल के मुख में जाता दिखाई दे रहा है । अहो ! सबको
भ्रम में डालने वाली भगवान् की माया रूप गति अचिन्त्य है, वह
कुछ भी समझ में नहीं आती ।
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सजीवन
साहिब मिले तो जीविये, नहीं तो जीवै नाँहिं ।
भावै अनँत उपाय कर, दादू मेयों माँहिं ॥२९॥
२७ - २९ में सजीवनता का विचार कह रहे हैं - परब्रह्म प्राप्त हो
तब ही नित्य जीवन प्राप्त हो सकता है, नहीं तो सदा जीवित नहीं रह सकता । चाहे सकाम कर्म रूप अनन्त उपाय करे तो
भी मरनेवालों की गणना में ही रहेगा ।
सजीवनि साधे नहीं, तातैं मर मर जाइ ।
दादू पीवे रामरस, सुख में रहे समाइ ॥३०॥
भक्ति रूप सजीवनी विद्या का साधन नहीं करता, इसीलिए बारँबार मर कर अन्य शरीरों में जाता है
और जो राम भक्ति - रस का पान करता है, वह सुख - स्वरूप
ब्रह्म में समाकर ब्रह्म रूप से अचल रहता है ।
(क्रमशः)
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