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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ११. राग देवगन्धार =*
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(४)
*अब हम जान्यौ सब मैं साषी ।*
*साषि पुरातन सुनि आगिली देह भिन्न करि नांषी ॥टेक॥*
अब हमने सभी प्राणियों में साक्षी रूप से स्थित उस चेतन तत्त्व को पहचान लिया है । हमने प्राचीन महात्माओं के वचन भी सुने हैं उनमें इस तत्त्व को देह से भिन्न ही बताया गया है ॥टेक॥
*साषी सनकादिक अरु नारद दत्त कपिल मुनि आषी ।*
*अष्टाबक्र बसिष्ठ ब्यास-सुत उन प्रसिद्ध यह भाषी ॥१॥*
हमने सनक, सनन्दन, नारद, दत्तात्रेय, कपिल मुनि, अष्टावक्र, वसिष्ठ, शुकदेव आदि पुराने सन्तों के भी वचन सुने हैं; उनमें भी इस तत्त्व को पृथक् ही बताया गया है ॥१॥
(क्रमशः)
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