मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

= पीव पिछाण का अंग ४७(६८/७२) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*जीवित मृतक साधु की, वाणी का परकास ।*
*दादू मोहे रामजी, लीन भये सब दास ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
*पीव पिछाण का अंग ४७*
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देवल१ मूरति गाय जल, फेरि पाइ जीव सेज । 
रज्जब रज२ काढ़तों३, निरख सु निर्गुण हेज४ ॥६९॥ 
माया रूप रज से मन को निकालते३ ही नामदेव का निर्गुण में प्रेम४ हुआ, उस निर्गुण प्रेम का प्रताप देख मंदिर१ और मूर्ति फिर गई, मरी गाय जीवित हो गई, और नामदेव जी ने जल प्रवाह को बदल कर शय्या प्राप्त की, उक्त कथायें भक्तमालों में विस्तार से हैं । 
सूखी शूली सौं हरि, बीज धना के खेत । 
रज्जब दिब१ में देखिये, निपट२ निरंजन हेत ॥७०॥ 
केवल२ निरंजन राम के प्रेम के प्रताप से भर्तहरि के शूली हरी हो गई(चोर समझकर भर्तहरि को शुली पर चढाया था किन्तु शूली में कोंपले निकल आई और वे बच गये थे) धना भक्त का खेत बिना बीज के ही उत्पन्न हो गया था । यह कथा प्रसिद्ध है और उष्ण लोहे का गोला१ सच्चे मनुष्य के हाथ को नहीं जलाता । 
गुरु सुत मारि जिलाइये, पर सुत होंहि पषान । 
रज्जब अवतारों रहित, गोरख गिरा१ बखान ॥७१॥ 
श्री कृष्ण अवतार ने गुरु पुत्रों को मार कर जीवित किया था, किन्तु अवतार बिना भी गोरखनाथ ने गोदावरी के कुँभ मेले में "ऊभे सिद्ध बैठे पाषान" यह वाणी१ कही तब अनेक नाथ पत्थर हो गये थे । अत: अवतारों बिना ही अन्य में भी निर्गुण प्रेम से शक्ति आ जाती है । 
योगेश्वर मुनि के सहित, सकल निरंजन दास । 
रज्जब परिचय प्राण पति, अवतारों सु निराश ॥७२॥ 
९ योगेश्वर और ७ मुनियों के सहित जिनका भी प्राण पति प्रभु से परिचय हुआ है, वे सभी अवतारों की आशा त्यागकर निरंजन परमात्मा के ही भक्त हैं ।
(क्रमशः)

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