#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सजीवन का अँग २६*
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दादू सब ही मर रहे, जीवे नाँहीं कोइ ।
सोई कहिये जीविता, जे कलि अजरावर होइ ॥२२॥
सभी काल के मुख में जाने योग्य सकाम कर्म करके मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं, सकाम कर्म करने वाला कोई भी परब्रह्म को प्राप्त नहीं होता । जीवित तो वही कहा जाता है, जो इस कलियुग में भी देवताओं से अति श्रेष्ठ परब्रह्म को प्राप्त हो कर अजर अमर हो गया ।
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दादू तज सँसार सब, रहे निराला होइ ।
अविनाशी के आसरे, काल न लागे कोइ ॥२३॥
जो सँपूर्ण साँसारिक प्रपँच को त्यागकर तथा सभी गुण विकारों से अलग होकर अविनाशी परब्रह्म के आश्रय रहता है, उसके पीछे काल नहीं लगता ।
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जागहु लागहु राम सौं, रैन बिहानी१ जाइ ।
सुमिर सनेही आपणा, दादू काल न खाइ ॥२४॥
हे लोगो ! तुम्हारी आयु - रात्रि व्यतीत१ होकर मृत्यु का दिन रूप प्रात:काल होने वाला है । अत: मोह निद्रा से जागकर राम की भक्ति में लगो । उस अपने सच्चे स्नेही राम का स्मरण करोगे तो तुम्हें काल नहीं खा सकेगा ।
(क्रमशः)
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