गुरुवार, 14 मार्च 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू निंदा नाम न लीजिये, स्वप्नै ही जनि होइ ।*
*ना हम कहैं, न तुम सुनो, हमैं जनि भाषै कोइ ॥* 
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इस जगत की कीचड़ को कीचड़ कह कर ही निंदा मत करना; इस कीचड़ में कमल छिपे हैं। और जब इस कीचड़ में कोई कमल खिले तो कीचड़ को मत भूल जाना। कमल की प्रशंसा में ऐसा न हो कहीं कि कीचड़ को भूल जाओ ! क्योंकि कमल कीचड़ की ही अभिव्यक्ति है।
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बहुत दिन के बाद व्योम का सुंदर सलोना रूप झांकता है बादलों के बीच से ! बहुत दिन के बाद फिर खिली है कली नीचे एक-- उठ कर कीच से !
कीचड़ में और कमल में कोई संबंध दिखाई पड़ता नहीं। मगर संबंध है। कीचड़ ही जन्मदात्री है, कीचड़ ही गर्भ है जिसमें कमल पकता है और प्रकट होता है।
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यह पृथ्वी माना कि कीचड़ है, मगर दूसरी बात भूल मत जाना कि इसमें कमल के प्रकट होने की संभावना पड़ी है। कुछ लोग इसकी निंदा करते हैं। और उनकी निंदा इतनी गहन हो गई है कि तुम भूल ही गए कि यहां कमल भी छिपा है।
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मैं तुम्हें कमल की याद दिलाना चाहता हूं। कीचड़ की निंदा में मत पड़ो, कमल की तलाश करो। और जिस दिन तुम कीचड़ में कमल को पा लोगे, उस दिन क्या कीचड़ को धन्यवाद न दोगे? उस दिन क्या देह को धन्यवाद न दोगे? उस दिन क्या इस पार्थिव जगत के प्रति अनुग्रह से न भरोगे? जिस पार्थिव जगत में परमात्मा का अनुभव हो सकता है, क्या उस पार्थिव जगत की निंदा की जा सकती है?

ओशो ~ उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र

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