#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*बावें देखि न दाहिने, तन मन सन्मुख राखि ।*
*दादू निर्मल तत्त्व गह, सत्य शब्द यहु साखि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**पतिव्रता का अंग ६६**
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ब्रह्मा विष्णु महेश के, शरणे कुशल१ न कोय ।
तो रज्जब तेतीस तज, राखणहार सु जोय ॥२५॥
ब्रह्मा, विषणु और महादेव की शरण में कोई आनन्द-मंगल१ नहीं है तब ११रूद्र १२आदित्य, ८ वसु, २अश्विनी कुमार इन ३३ देवताओं को भी त्याग कर रक्षक परमात्मा को ही देखने के लिये पतिव्रत पूर्वत सम्यक साधन कर ।
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शिव शिर गह्या सु चन्द्रमा, ब्रह्म रह्या न वेद ।
राम कृष्ण रमणी गमी, रज्जब पाया भेद ॥२६॥
शिव के शिर में रहने पर भी चन्द्रमा राहु द्वारा पकड़ा जाता है, ब्रह्म से भी वेद की रक्षा नहीं हो सकी, दैत्य हर ले गये, राम की पत्नी रावण द्वारा हरी गई, कृष्ण की पत्नियों को आभीरों ने हर लिया, अत: यह रहस्य हमें मिल गया कि निर्गुण परमात्मा में पतिव्रत रखने से ही रक्षा हो सकती है ।
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गोपी लूटी कृष्ण की, रावण ले गयो सीत ।
रज्जब रहिये शरण किहिं, सुन जो भये भयभीत ॥२७॥
कृष्ण की गोपियों को आभीरों ने लूटा, सीता को रावण ले गया, यह सुनकर भय से डर गये हैं, अब किसकी शरण में रहें ?
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सीता शील सुला१ किया, दिब२ दे आनी जब्ब ।
रज्जब जानी राम की, सकलाई३ तब सब्ब ॥२८॥
जब सीता को शीलव्रत के दोष१ का अन्वेषण किया और उसे दिव्य२ अग्नि परीक्षा द्वारा अपनाई तब ही राम की सब शक्ति३ का पता लग गया था, यदि सर्वज्ञ थे तो परीक्षा क्यों करते ? अत: निर्गुण राम में ही पतिव्रत रखना चाहिये ।
(क्रमशः)
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