#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= १७. राग जैजैवन्ती(२/१)=*
.
*आपुकौ संभारै जब तूं ही सुष सागर है ।*
*आपकूं बिसारै तब तूं ही दुःख पाइ है ॥(टेक)*
*तूं ही जब आवै ठौर दूसरौ न भासै और ।*
*तेरी ही चपलता तें दूसरौ दिषाइ है ॥१॥*
आत्म चिंतन करने पर तुझे अपना हृदय ‘सुख का सागर’ ज्ञात होगा । वैसा न करने पर तुझे सर्वत्र दुःख प्रतीत होगा ॥टेक॥
तूँ जब अपनी स्थिति में आ जाता है तब किसी दूसरे को यहाँ कैसे मिलना है ? (रे मन !) तेरी ही चंचलता के कारण तुझे यह द्वैत दिखायी दे रहा है ॥१॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें