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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१५/३)=*
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*इहै ज्ञान गहि गये भरथरी*
*केते और भुंवाला ।*
*इहै ज्ञान गहि गोपी चन्दहि*
*छाड्यौ सब जञ्जाला ॥६॥*
*इहै ज्ञान गहि नाम कबीरा*
*पीवै अंमृत प्याला ।*
*इहै ज्ञान गहि सोझा पीपा*
*जन रैदास कमाला ॥७॥*
*इहै ज्ञान गहि यौं गुरु दादू*
*चलि सन्तनि की चाला ।*
*इहै ज्ञान पायौ जन सुन्दर*
*जग तैं भया निराला ॥८॥*
राजा भर्तृहरि तथा अन्य गोपीचन्द आदि अनेक राजाओं ने भी समस्त सांसारिक प्रपञ्च त्यागकर यही कठोर साधना की थी ॥६॥
इसी कठोर साधना का अमृतरस पीकर कबीर ने सन्तों में श्रेष्ठता प्राप्त की । तथा रामरस का अमृतपान किया । भक्त सोझा सन्त पीपा, सन्त रैदास, तथा कबीर पुत्र कमाल इसी रामरस का अमृत प्याला पीकर इस उत्तम सन्त श्रेणी में अपना स्थान बना पाये ॥७॥
हमारे गुरुदेव श्रीदादूदयाल भी यही रामरस का अमृतपान कर सन्त परम्परा में प्रतिष्ठित हुए । इस प्रकार, यह लम्बी सन्तपरम्परा लोक में चल निकली । अब इसी परम्परा में सुन्दरदास भी अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त कर सम्मिलित हो गये । तथा स्वयं को जगत् से पृथक कर लिया ॥८॥
(क्रमशः)
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