सोमवार, 11 मार्च 2019

= *पतिव्रता का अंग ६६(१७/२०)* =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू कहतां सुणातां राम कह, लेतां देतां राम ।*
*खातां पीतां राम कह, आत्म कवल विश्राम ॥*
=============== 
**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
.
**पतिव्रता का अंग ६६**
.
दरस बिना जो दीजिये, सो ले मूरख दास । 
बैकुण्ठ सहित वसुधा मिल्यूं, रज्जब रहा उदास ॥१७॥ 
परमात्मा के दर्शन बिना जो दिया जाय उसे मूर्ख भक्त ही लेता है, विचारशील भक्त तो बैकुण्ठ के सहित सब पृथ्वी मिलने पर भी उदास ही रहा है प्रसन्न नहीं हुआ । 
रज्जब रिद्धि सिद्धि निधि सभी, लह्यूं लह्या कुछ नाँहिं । 
जब लग आतम राम सौं, मेला नाँहिं माँहिं ॥१८॥ 
ऋद्धि-सिद्धि, निधी आदि सब कुछ प्राप्त कर लिया हो और भीतर आत्मा तथा राम का मिलन नहीं हुआ हो तो कुछ भी प्राप्त नहीं किया है, यही यथार्थ दृष्टि है । 
असंख्य लोक रिद्धि सिद्धि सहित, जीवहिं दे जगदीश । 
रज्जब रीति राम बिन, आतम विसवाबीस१ ॥१९॥ 
ऋद्धि -सिद्धि के सहित असंख्य लोक जीव को जगदीश्वर दें तो भी वह जीवात्मा ब्रह्म के साक्षात्कार बिन निश्चय१ पूर्वक खाली ही रहेगा । 
रीति१ रमत२ राम बिन, खलक३ सु खाली खेल । 
सुरपुर४ नरपुर५ नागपुर६, कदरज७ क्रीड़ा८-केल९ ॥२०॥ 
राम की प्राप्ति बिना संसार भ्रमण२ खाली१ है अर्थाथ व्यर्थ है, सब संसार३ खाली खेल के समान है, स्वर्ग४ मर्त्यलोक५, और भोगवती६ कंजूस७ के आगे खेल८ करने के समान है, जैसे कंजूस के आगे खेल९ करने पर कुछ भी नहीं मिलता, वैसे ही उक्त लोकों में कुछ भी नहीं मिलता, वैसे ही उक्त लोकों में शांती भी नहीं मिलती, शांती तो राम की प्राप्ति होने पर मिलती है, अन्यथा नहीं मिलती । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें