#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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बे मरयादा१ मित नहीं, ऐसे किये अपार ।
मैं अपराधी बापजी२, मेरे तुमहीं एक आधार ॥७॥
जिन में लोक मर्यादा और वेद मर्यादा की सीमा१ का निर्वाह नहीं होता, ऐसे अनन्त कार्य मैंने किये हैं । अत: मैं अपराधी तो हूं ही, किन्तु हे पिताश्री२ ! अब मैंने केवल आपका ही आश्रय लिया है । इससे मुझे आशा है - आप मेरा उद्धार करेंगे ।
(क्रमशः)
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