#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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*करुणा*
दादू पछतावा रह्या, सके न ठाहर लाइ ।
अर्थ न आया राम के, यहु तन योंही जाइ ॥२१॥
साधन प्रमाद का खेद दिखा रहे हैं - अहो ! हमें यह पश्चात्ताप ही रह गया कि - बुद्धि आदि के सँघात रूप शरीर को राम की भक्ति रूप कार्य में लगाकर, अपने आत्मा को परमात्मा रूप निज धाम में नहीं पहुँचा सके । अत: यह मानव तन व्यर्थ ही जा रहा है ।
(क्रमशः)
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