#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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दादू माया परकट ह्वै रही, यों जे होता राम ।
अरस परस मिल खेलते, सब जिव सब ही ठाम ॥२५॥
जैसे मायिक प्रपँच प्रकट रूप से भास रहा है, वैसे ही यदि राम भासते, तो जिस प्रकार मायिक विषयों से सभी जीव आनन्दित होते हैं, उसी प्रकार सभी स्थानों में सभी प्राणी भगवान् से प्रत्यक्ष रूप में मिलकर अखँडानन्द प्राप्त कर सकते था ।
(क्रमशः)
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