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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*जहाँ सुरति तहँ जीव है, जहँ जाणै तहँ जाइ ।*
*गम अगम जहँ राखिये, दादू तहाँ समाइ ॥*
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साभार ~ Rashmi Achmare
परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष। इसलिए परम ज्ञानियों ने परमात्मा शब्द का उपयोग भी नहीं किया। महावीर मोक्ष की बात करते हैं, परमात्मा की नहीं। क्योंकि परमात्मा शब्द के साथ बड़ी भ्रांतियां जुड़ गई हैं; उसके साथ भी बड़े कारागृह जुड़ गए हैं। बुद्ध निर्वाण की बात करते हैं, परमात्मा की नहीं I
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धर्म एक परम स्वातंत्र्य है। इस बात को खयाल में रखें, तो शंकर के ये अंतिम सूत्र समझ में आ सकेंगे। 'काम, क्रोध, लोभ और मोह को त्याग कर स्वयं पर ध्यान करो।'
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ये चार बंधन हैं, जिनसे तुम्हारा मोक्ष छिन गया है, जिनसे तुम्हारा मोक्ष दब गया है--काम, क्रोध, लोभ और मोह। इन चार को भी अगर संक्षिप्त कर लो तो एक ही बचता है--काम। क्योंकि जहां काम होता है, वहीं मोह पैदा होता है; जहां मोह पैदा होता है, वहीं लोभ पैदा होता है; और जहां लोभ पैदा होता है, अगर इसमें कोई बाधा डाले, तो उसके प्रति क्रोध पैदा होता है। मूल बीमारी तो काम है।
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काम का अर्थ समझ लो। काम का अर्थ है: दूसरे से सुख मिल सकता है, इसकी आशा। काम का अर्थ है: मेरा सुख मेरे बाहर है। और ध्यान का अर्थ है: मेरा सुख मेरे भीतर है।
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बस, अगर ये दो परिभाषाएं ठीक से समझ में आ जाएं, तो तुम्हारी यात्रा बड़ी सुगम हो जाएगी। काम का अर्थ है: मेरा सुख मुझसे बाहर है--किसी दूसरे में है; कोई दूसरा देगा तो मुझे मिलेगा; मैं अकेला सुख न पा सकूंगा; मेरे अकेले होने में दुख है और दूसरे के संग-साथ में सुख है।
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काम अगर छूट जाए--दूसरे में सुख है, यह बात अगर छूट जाए--बस इतनी सी ही बात है, इतने पर सब दारोमदार है, इतना दिख जाए कि दूसरे में सुख नहीं है, सब हो गया। क्रांति घटित हो गई। क्योंकि जैसे ही दूसरे में सुख नहीं है, तुम दूसरे का मोह न करोगे।
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अब मोह क्या करना है? मोह तो हम उस चीज का करते हैं, जिसमें सुख की आशा है; उसको सम्हालते हैं, बचाते हैं, सुरक्षा करते हैं, कहीं खो न जाए, कहीं मिट न जाए, कहीं कोई छीन न ले। मोह तो हम उसी का करते हैं जहां हमें आशा है--कल सुख मिलेगा। कल तक नहीं मिला, आज तक नहीं मिला--कल मिलेगा। इसलिए कल के लिए बचा कर रखते हैं। आज तक का अनुभव विपरीत है, लेकिन उस अनुभव से हम जागते नहीं। हम कहते हैं: कल की कौन देख आया ! शायद कल मिले।
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और अगर मोह न हो तो लोभ का क्या सवाल है? लोभ का अर्थ है: जिसमें सुख मिलने की तुम्हारी प्रतीति है, उसमें और-और सुख मिले। अगर दस रुपये तुम्हारे पास हैं, तो हजार रुपये हों--यह लोभ है। अगर एक मकान तुम्हारे पास है, तो दस मकान हों--यह लोभ है। लोभ का अर्थ है: जिसमें सुख मिला, उसमें गुणनफल करने की आकांक्षा।
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मोह का अर्थ है: जिसमें मिला, उसे पकड़ लेने की, परिग्रह करने की, आसक्ति बांधने की। लोभ का अर्थ है: उसमें गुणनफल कर लेने की आकांक्षा। लेकिन जिसमें मिला ही नहीं, उसका तुम गुणनफल क्यों करना चाहोगे? कोई कारण नहीं है।
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और क्रोध का क्या अर्थ है? जिसमें तुम्हें दिखाई पड़ता है सुख मिलेगा, उसमें अगर कोई बाधा डालता हो तो क्रोध पैदा होता है। तुम धन कमाने जा रहे हो, कोई बीच में आड़े आ जाए, तो क्रोध पैदा होता है। तुम एक स्त्री से विवाह करने जा रहे हो और दूसरा आदमी अड़ंगे डालने लगे, तो क्रोध पैदा होता है। तुम चुनाव जीतने के करीब थे कि एक दूसरे सज्जन खड़े हो गए झंडा लेकर, तो क्रोध पैदा होता है। क्रोध का अर्थ है: तुम्हारी कामना में जब भी कोई अवरोध डालता है।
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तो क्रोध, लोभ और मोह--छायाएं हैं काम की।
💥🙏💖ओशो 💖🙏💥
भज गोविंदम मुढ़मते(आदि शंक्राचार्य) प्रवचन--09
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