सोमवार, 8 जुलाई 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू होना था सो ह्वै रह्या, और न होवै आइ ।*
*लेना था सो ले रह्या, और न लिया जाइ ॥*
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साभार ~ @Punjabhai Bharadiya

मैंने सुना है, एक सम्राट ने रात सपना देखा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। लौटकर उसने देखा सपने में, एक काली छाया—भयंकर, वीभत्स, घबड़ाने वाली ! पूछा: तू कौन है? उस छाया ने कहा: मैं मृत्यु हूं, और तुम्हें सूचना देने आई हूं। कल सूरज के डूबते तैयार रहना, लेने आती हूं।
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आधी रात ही नींद खुल गई; ऐसे सपने में किसकी नींद न खुल जाएगी? घबड़ाकर सम्राट उठ आया। आधी रात थी, सपना शायद सपना ही हो; मगर कौन जाने, कभी—कभी सपने भी सच हो जाते हैं।
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इस दुनिया में बड़ा रहस्य है। यहां जो सच जैसा मालूम पड़ता है, अक्सर सपना सिद्ध होता है। और कभी—कभी ऐसा भी हो जाता है कि जो सपना जैसा मालूम होता है, सत्य सिद्ध हो जाता है। सपने और सत्य में यहां बहुत फर्क नहीं है, शायद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
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सम्राट डरा। रात ही, आधी रात ही ज्योतिषी बुलवा लिए, कहा कि सपने की खोजबीन करो। उस समय के जो फ्रायड होंगे, जुंग, एडलर—मनोवैज्ञानिक—सब बुला लिए। राजधानी में थे बड़े—बड़े मनोवैज्ञानिक और ज्योतिषी और विचारक, वे सब आ गए अपने—अपने शास्त्र लेकर; और उनमें बड़ा विवाद छिड़ गया कि इसका अर्थ क्या है। कोई कुछ अर्थ करे, कोई कुछ अर्थ करे; अपने—अपने अर्थ।
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सम्राट तो घबड़ाने लगा। वैसे ही बिगूचन में पड़ा था, इनके अर्थ सुनकर और इनका विवाद सुनकर और उलझ गया। शास्त्रों से अक्सर लोग सुलझते नहीं, उलझ जाते हैं। पंडितों की बातों को सुनकर लोगों का समाधान नहीं होता, और समाधान पास हो तो वह भी चला जाता है। तर्कजाल से समाधान हो भी नहीं सकता।
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उनमें बड़ा विवाद छिड़ गया। उनमें बड़ा अहंकार का उपद्रव मच गया। उनको प्रयोजन ही नहीं सम्राट से। सम्राट ने कई बार कहा कि भाई मेरे, नतीजे की कुछ बात करो, क्योंकि सूरज ऊगने लगा। और सूरज ऊगने लगा, तो सूरज के डूबने में देर कितनी लगेगी? मुझे कुछ कहो कि मैं करूं क्या? मगर वे तो विवाद में तल्लीन थे। वे तो अपने शास्त्रों से उद्धरण दे रहे थे। वे तो अपनी बात सिद्ध करने में लगे थे।
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आखिर, सम्राट का बूढ़ा नौकर था, उसने सम्राट के पास आकर कहा: यह विवाद कभी समाप्त नहीं होगा और सांझ जल्दी आ जाएगी। मैं जानता हूं कि पंडितों के विवाद कभी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते। सदियां बीत गईं, कोई निष्कर्ष नहीं है ! जैन—बौद्ध अभी भी विवाद करते हैं; हिंदू—जैन अभी भी विवाद करते हैं; ईसाई—हिंदू अभी भी विवाद करते हैं—विवाद जारी है। आस्तिक—नास्तिक विवाद कर रहे हैं—विवाद जारी है। हजारों साल बीत गए, एक भी तो नतीजा नहीं है। 
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तो क्या आप सोचते हैं सांझ होते होते नतीजा ये निकाल पाएंगे? इनको करने दो विवाद। मेरी मानो, यह महल—इस महल में अब क्षण—भर भी रुकना ठीक नहीं है, यहां से भाग चलें। भाग जाओ। तुम्हारे पास तेज घोड़ा है, ले लो; और जितनी दूर निकल सको इस महल से निकल जाओ। इस महल में जो सूचना मौत ने दी है, तो इस महल में अब रुकना ठीक नहीं। इनको विवाद करने दो; बचोगे तो बाद में इनका निष्कर्ष समझ लेना।
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बात सम्राट को भी समझ में आई, कुछ करना जरूरी है। और क्या किया जा सकता है? लिया उसने अपना तेज घोड़ा और भागा। पंडित विवाद करते रहे, सम्राट भागा। सांझ होतेऱ्होते काफी दूर निकल आया, सैकड़ों मील दूर निकल आया; ऐसा तेज उसके पास घोड़ा था। खुश था बहुत। 
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एक आमों के बगीचे में सांझ हुई, तो रुका। घोड़े को बांधा। न केवल महल छोड़ आया था, साम्राज्य भी अपना पीछे छोड़ आया था। यह दूसरे राज्य में प्रवेश कर गया था। घोड़े को बांधा, घोड़े को थपथपाया, धन्यवाद दिया, कहा कि तू मुझे ले आया इतने दूर ! दिन में तूने एक बार रुककर भी श्वास न ली। मैं तेरा अनुगृहीत हूं।
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जब वह यह कह ही रहा था और सूरज ढल रहा था, अचानक चौंका, वही हाथ जो रात सपने में देखा था, कंधे पर है। लौट कर देखा—मौत खड़ी है, खिलखिलाकर हंस रही है। सम्राट ने पूछा कि बात क्या है? मौत ने कहा कि धन्यवाद मुझे देने दें आपके घोड़े को, आप न दें। क्योंकि मैं बेचैन थी, इसलिए रात सपने में आई थी। 
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मरना तुम्हें इस अमराई में था, और इतना फासला और कुल चौबीस घंटे बचे ! तुम पहुंच पाओगे कि नहीं, चिंता मुझे थी। मौत तुम्हारी यहां घटनी थी। घोड़ा ले आया, ठीक वक्त पर ले आया, गजब का घोड़ा है ! तुम भागोगे कहां? कौन जाने तुम जहां भागकर जा रहे हो, वहीं मौत घटनी हो, उसी अमराई में ! मौत तो घटनी है। भागकर जाने का कोई उपाय नहीं है। मौत तुम्हें चारों घड़ी खोज रही है, चारों आयाम खोज रही है।

ओशो, कहै वाजिद पुकार(प्रव.-7)

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