गुरुवार, 11 जुलाई 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सोने सेती बैर क्या, मारे घण के घाइ ।*
*दादू काटि कलंक सब, राखै कंठ लगाइ ॥*
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साभार ~ Rashmi Achmare 

मैं चाहता हूं, तुम परिपक्व हो जाओ; तुम जहां हो, वहीं परिपक्वता आ जाए। और परिपक्वता मूल चीज है, बाकी तो सब ठीक है। और जीवन में बड़े सवाल हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि तुम जहां से भी कच्चे हटा लिए जाओगे, तुम वहां से हट तो जाओगे शारीरिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से कैसे हटोगे? और मन में जो तुम रस ले जाओगे, वह रस तुम्हारे साथ रहेगा। और तुम जहां भी रहोगे, वह रस अपने संसार को फिर खड़ा कर लेगा। बीज तुम्हारी वासना में है; तुम्हारी परिस्थिति में नहीं है, तुम्हारी मनःस्थिति में है।
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संन्यास आंतरिक क्रांति है। वह इस बात की उदघोषणा है कि मैं भीतर अपने को अब बदलूंगा। और मैं मानता हूं कि जितनी सुविधा बाजार में है बदलने की, उतनी हिमालय पर नहीं है। क्योंकि बाजार में प्रतिपल मौके हैं, जहां चुनौती है; और बाजार में प्रतिपल अवसर हैं, जहां गिरने की सुविधा है; और बाजार में प्रतिपल संघर्ष है, जहां तुम ज्यादा देर अपने को धोखा नहीं दे सकते। बाजार दर्पण है। हर आदमी जिससे तुम मिलते हो, तुम्हारे भीतर तुम्हारे किसी मन के कोने को रोशन कर देता है।
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इसे थोड़ा समझो। बहुत सी बातें तुम्हें अपने संबंध में कभी पता ही न चलेंगी, अगर तुम लोगों से न मिलो। समझो कि गाली देने वाला तुम्हें कभी मिले ही न, तो तुम्हें अपने भीतर के क्रोध का पता न चलेगा। कैसे पता चलेगा? गाली देने वाला तुम्हें कभी मिले ही न, अपमान करने वाला कभी मिले ही न, तो तुम यही समझोगे कि तुम अक्रोधी हो। गाली देने वाला मिले, तब तुम्हारे भीतर के क्रोध का तुम्हें पहली दफा संस्पर्श होगा।
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तो गाली देने वाले ने तुम्हारे आत्म-दर्शन में सहायता दी; उसने तुम्हारे एक पहलू को रोशन किया; तुम्हारा एक अंधेरा हिस्सा दबा पड़ा था, उसे जगाया; उसने तुम्हें बताया कि तुम्हारे भीतर क्रोध है; उसने तुम्हें स्वयं को समझने के लिए सुविधा दी।
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जंगल में भाग गए संन्यासी की सुविधाएं खो जाती हैं--न कोई गाली देता, न कोई सम्मान करता, न कोई धन का प्रलोभन देता--कोई कुछ मौका नहीं देता। वह अकेला पड़ा रह जाता है; आत्म-दर्शन कठिन हो जाता है। संसार में आत्म-दर्शन का उपाय है। नहीं तो परमात्मा ने जंगल ही जंगल बनाए होते और एक-एक आदमी को एक-एक जंगल दिया होता। परमात्मा तुमसे थोड़ा ज्यादा समझदार है, इतना तो मानोगे? 
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साधना संसार में है, जंगल में तो साधना का सवाल ही नहीं है। जंगल में तो तुम सड़ोगे, साधना क्या करोगे? साधना यहां है, जहां प्रतिपल कांटे हैं। और कांटों के बीच जिस दिन तुम चलना सीख लो, और कांटों के बीच तो चलो और कांटे चुभें न--बस उसी दिन तुम समझ लेना, अब तुम योग्य हुए जंगल जाने के। अब जाना हो तो चले जाओ। फिर मैं तुम्हें रोकता नहीं। लेकिन फिर तुम खुद ही कहोगे, अब जंगल जाने की जरूरत भी क्या है; यहीं भीड़ में जंगल हो गया है।
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अगर तुम्हारे भीतर प्रौढ़ता आ जाए, प्रज्ञा का जन्म हो। और कैसे होगा जन्म? संघर्षण से होता है; प्रतिपल जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने से होता है; हारने, गिरने, उठने से होता है। हजार बार गाली दी जाएगी, तुम क्रोधित होओगे। एक बार तो ऐसा क्षण पाओगे, जब गाली दी जाएगी और तुम क्रोधित न होओगे। 
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हजार बार के अनुभव से तुम्हें समझ में आ जाएगा, अपने को जलाना व्यर्थ है; गाली कोई दूसरा दे रहा है, दंड अपने को देना व्यर्थ है। एक दिन तो ऐसा आएगा कि कोई दूसरा गाली देगा और तुम्हारे भीतर क्रोध न होगा। उसी दिन तुम्हारे भीतर एक कांटा फूल बन गया; आदमी तुम दूसरे हो गए। उस दिन तुम्हें जो शांति मिलेगी, कोई जंगल नहीं दे सकता। जंगल की शांति मुर्दा है। अगर यहां गालियों के बीच तुम शांत हो गए, तो तुम्हारी शांति में एक जीवंतता होगी। जंगल की शांति मरघट जैसी है; सन्नाटा है, क्योंकि वहां कोई है ही नहीं। वह नकारात्मक है। संसार में अगर तुम शांत हो जाओ तो विधायक है। जंगल की शांति मरने जैसी है, संसार की शांति बड़ी जीवंत है।
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और मैं तुमसे कहता हूं, परमात्मा को पाना हो तो तुम भागना मत। भगोड़ों से परमात्मा का कभी कोई संबंध नहीं जुड़ता। कायरों से संबंध जुड़ भी कैसे सकता है? चुनौती स्वीकार करने वाला साहस चाहिए। माना कि साहस में गिरना भी होता है, चोट भी खानी होती है। लेकिन वही मार्ग है, वही एकमात्र मार्ग है, और कोई मार्ग नहीं है।
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तुमने कभी खयाल किया, बहुत सुविधा-संपन्न घरों के बच्चे बुद्धिमान नहीं होते। हो नहीं सकते; चुनौती नहीं है। सारे बुद्धिमान बच्चे उन घरों से आते हैं, जहां बड़ा संघर्ष करना पड़ता है; जहां छोटी-छोटी बात को पाना मुश्किल है। करोड़पतियों के बच्चे अक्सर व्यर्थ होते हैं।
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हेनरी फोर्ड अपने लड़कों को सड़क पर जूता पालिश करने भिजवाता था; वह कहता था, अपने जेब का खर्च तुम खुद ही पैदा करो। दुनिया का सबसे बड़ा अरबपति ! पड़ोसियों ने भी उससे कहा कि यह ज्यादती है, यह तुम क्या करवा रहे हो?
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उसने कहा कि मैंने खुद जूते पालिश कर-कर के पैसा कमाया है। जो मेरे जमाने में धनपति थे, भीख मांग रहे हैं। मैं भिखमंगा था; मैं आज दुनिया का सबसे बड़ा करोड़पति हो गया हूं। मैं अपने बच्चों को भिखमंगा नहीं बनाना चाहता, इसलिए उन्हें जूते पर पालिश करने सड़क पर भेजता हूं।
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वह आदमी होशियार था। वह आदमी कुशल था। धनपतियों के बच्चे अक्सर मुर्दा हो जाते हैं, गोबर-गणेश हो जाते हैं। उनको खोदो तो गोबर ही गोबर पाओगे, गणेश कहीं भी न मिलेंगे; क्योंकि जीवन की चुनौती नहीं है, संघर्षण नहीं है।
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अगर बहुत सुरक्षा मिले और कोई संघर्ष न हो, तो रीढ़ टूट जाती है। रीढ़ बनती ही संघर्ष में है। जितना तुम संघर्ष लेते हो, उतनी ही रीढ़ पैदा होती है; उतने ही तुम मजबूत होते हो।
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संसार से भागने को मैं नहीं कहता, मैं संसार से जागने को कहता हूं। संन्यास भगोड़ापन नहीं है, संन्यास महान संघर्ष है जागरण का। और जहां चुनौती है, वहां से हट मत जाना। हां, जब तक चुनौती का काम ही पूरा न हो जाए, तब तक तो टिके ही रहना। और जल्दी ही काम पूरा हो सकता है। अगर भागने की वृत्ति न हो, तो जल्दी ही जागना हो सकता है; क्योंकि वही शक्ति जो भागने में लगती है, वही जागने में लग जाती है।
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मैं तुमसे उस शांति को नहीं कहता जो मरघट पर है, मैं तुमसे उस शांति को कहता हूं जो श्रम से अर्जित की जाती है; मर कर नहीं, जो महान रूप से जीवंत होकर उपलब्ध होती है--विधायक।

💥🙏💖ओशो 💖🙏💥
भजगोविंदम मुढ़मते(आदि शंक्राचार्य) प्रवचन--06

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