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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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१९ - स्पर्श विनती । द्वितीय ताल
संग न छाडूँ मेरा पावन पीव,
मैं बलि तेरे जीवन जीव ॥टेक॥
संग तुम्हारे सब सुख होहि,
चरण कमल मुख देखूँ तोहि ॥१॥
अनेक जतन कर पाया सोइ,
देखूँ नैनहुं तो सुख होइ ॥२॥
शरण तुम्हारी अंतर वास,
चरण कमल तहं देहु निवास ॥३॥
अब दादू मन अनत न जाइ,
अंतर वेधि१ रह्यो ल्यौ लाइ ॥४॥
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नित्य मिलनार्थ विनय कर रहे हैं - मेरे प्राणाधार स्वामिन् ! मैं आप की बलिहारी जाता हूं । आप मुझ पर ऐसी दया करो, जिससे मैं आपका संग न छोड़ सकूं ।
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आपके संग से मुझे सँपूर्ण सुख होते हैं, मैं आपके चरण - कमल और मुखारविन्द का दर्शन करता रहता हूं ।
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भक्ति आदि नाना साधन करके आपके स्वरूप को प्राप्त किया है, उसे निरन्तर नेत्रों से देखता रहूं, तभी आनन्द रहता है ।
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मैं आपकी शरण हूं । आन्तर समाधि अवस्था में जहां आपके चरण - कमलों का वास है, वहां ही मुझे निवास दीजिये ।
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अब मेरा मन अन्य ओर नहीं जाता । मैं सभी अन्तरायों को छेदन१ करके आपके स्वरूप में ही वृत्ति लगावे रहता हूं ।
(क्रमशः)
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