#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*ये सषि बिरह सतावै, नींद न आवै ।*
*कठिन कठिन करि रैंनि बिहावै ॥३॥*
*ये सषि अजहुं न आया, किन बिरमाया ।*
*सुन्दर बिरहनि अति दुःख पाया ॥४॥*
हे सखि ! मुझे आपका यह विरह वियोग सता रहा है । इसके कारण मुझे निद्रा भी नहीं आती । किसी न किसी प्रकार, करवट ले लेकर अपनी रात बिताती हूँ ॥३॥
हे सखि ! मुझको अब तक भी आपका मिलन नहीं हुआ ? किसने आपको बहका लिया है ? महाराज सुन्दरदासजी कहते हैं – मैं आपके विरह में अतिशय दुःख पा रही हूँ ॥४॥
(क्रमशः)
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