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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द*
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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२८ - उपदेश । एकताल
मन निर्मल तन निर्मल भाई,
आन उपाइ विकार न जाई ॥टेक॥
जो मन कोयला तो तन कारा,
कोटि करै नहिं जाइ विकारा ॥१॥
जो मन विषहर तो तन भुवँगा,
करे उपाइ विषय पुनि संगा ॥२॥
मन मैला तन उज्ज्वल नाँहीं,
बहु पचहारे विकार न जाँहीं ॥३॥
मन निर्मल तन निर्मल होई,
दादू साच विचारे कोई ॥४॥
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सत्योपदेश कर रहे हैं - हे भाई ! यदि मन निर्मल होगा तो इन्द्रियादि शरीर भी निर्मल होगा । मन निर्मल हुये बिना अन्य उपाय से विकार नष्ट नहीं होते ।
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यदि मन मलीन है तो इन्द्रियादि शरीर भी मलीन ही रहेगा, चाहे कोटि उपाय करो, विकार दूर न हो सकेंगे ।
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यदि मन विषय - विष युक्त सर्प बन रहा है तो शरीर भी सर्प ही है और फिर भी विषयों के साथ रहने का उपाय करता रहता है ।
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जब तक मन मलिन है तब तक इन्द्रियादि शरीर उज्ज्वल नहीं हो सकता । बहुत लोग परिश्रम करके हार गये हैं किन्तु मन शुद्धि बिना इन्द्रियों के विकार नष्ट नहीं होते ।
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मन निर्मल होते ही इन्द्रियादि शरीर निर्मल हो जाता है । यह बात सत्य है, कोई भी विचार करके देख ले ।
(क्रमशः)
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