मंगलवार, 27 अगस्त 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१४१-४४)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*सतगुरु पसु मानस करै, मानस थैं सिध सोइ ।*
*दादू सिध थैं देवता, देव निरंजन होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
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मनुष्य देह माया सहित, पाई पूरण भाग । 
तो रज्जब गुरु साधु की, सेवा दृढ़ करि लाग ॥१४१॥ 
पूर्ण भाग्यवश धन के सहित मनुष्य देह प्राप्त हुआ है तो सदगुरु और संतों की सेवा में दृढ़ प्रेम करने लग । 
सेवक कन१ सेवा शक्ति२, घर आये गुरु साध । 
सु समय सुकृत लेहु करि, जे है बुद्धि अगाध ॥१४२॥ 
गुरु और संत घर आवें तो गृहस्थ सेवक के पास१ धन२ रूप ही सेवा है अर्थात धन के द्वारा वह गुरु और संतों की सेवा करे । यदि तू अपार बुद्धिमान् है तो यह मनुष्य शरीर का समय सबसे अच्छा है, इसमें पुण्य कार्य कर ले । 
रज्जब दोस्त जीव के, सांई सदगुरु साध । 
यहु शिक्षा सुन सेय१ सो२, जे है बुद्धि अगाध ॥१४३॥ 
जीव के सच्चे मित्र परमात्मा, सदगुरु और संत हैं, यदि तू अगाध बुद्धि वाला है तो यह शिक्षा सुनकर उक्त तीनों२ की सेवा१ कर । 
हरि भज तौं१, तज तौं विषय, करतौं साधू सेव । 
रज्जब इहिं रह२ चालतौं, मानुष सौं ह्वै देव३ ॥१४४॥ 
तूं१ विषयों के राग को त्याग के संतों की सेवा करते हुये हरि-भजन कर, इस परमार्थ मार्ग२ में चलने से तू मनुष्य से ब्रह्म३ बन जायगा ।
(क्रमशः)

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