शनिवार, 24 अगस्त 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१२९-३२)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ ।* 
*सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
रज्जब कुदरत१ देखि खुदाय की, खालिक२ कीजे याद । 
श्वास शब्द लागै अरथ, जन्म न जाई बाद३ ॥१२९॥ 
ईश्वर की शक्ति१ देखकर सृष्टिकर्त्ता ईश्वर२ का स्मरण कर, जिससे तेरे श्वास और शब्द भगवान के अर्थ लग जाय और तेरा जन्म व्यर्थ३ न जाकर सफल हो जाय । 
रज्जब अज्जब अकलि यहु, साहिब कीजे याद । 
सो साहिब हि विसार तों, विविध बुद्धि सो बाद ॥१३०॥ 
प्रभु के स्मरण करने की बुद्धि होने से ही यह मनुष्य अदभुत बुद्धि वाला कहलाता है, उसे प्रभु को भूलने पर तो विविध प्रकार की बुद्धि हो तो वह मनुष्य अपना जन्म व्यर्थ ही खोता है । 
माया तज ब्रह्माहिं भजे, येते को सब ज्ञान । 
रज्जब मूरख चतुर ह्वै, मन उनमनि लै सान ॥१३१॥ 
माया को त्यागकर ब्रह्म का भजन करे, इतने कर्म के लिये ही सब प्रकार के ज्ञान हैं । मन को लय योग द्वारा समाधि में ले जाकर प्रभु स्वरूप में मिलाने से मूर्ख भी परमार्थ में प्रवीण हो जाता है । 
मन वच कर्म त्रिशुद्ध ह्वै, माया तज भज राम । 
जन रज्जब संसार में, एता ही है काम ॥१३२॥ 
संसार में तेरे लिये इतना ही काम है कि माया को त्याग कर राम का भजन कर इससे तन, वचन और कर्म शुद्ध हो जायेंगे और तू शुद्ध ब्रह्म में मिल जायगा । 
(क्रमशः)

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