बुधवार, 11 सितंबर 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(२०१-२०३)* =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*प्राण कवल मुख राम कहि,*
*मन पवना मुख राम ।*
*दादू सुरति मुख राम कहि,*
*ब्रह्म शून्य निज ठाम ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
सत सुकृत सुमिरण करत, विलम्ब न कीजे वीर१ । 
गुरु२ गिरिवर गहरे३ तिरत, रज्जब गहिये धीर ॥२०१॥ 
हे भाई१ ! सत्यपालन, पुण्य कर्म और राम नाम का स्मरण करने में देर मत कर, सेतु बाँधने के समय राम नाम से बहुत२ से महान३ पर्वत तिर गये हैं और प्राणी तिरते ही हैं, यह समझ कर धैर्य ग्रहण करके निरंतर नाम-स्मरण करता रह । 
रज्जब महंत१ महीपति नर सु तरु, जड़ सेवक संसार । 
माली सम मुंह आगले, मूलहुं सींचण हार ॥२०२॥ 
जैसे वृक्ष की जड़ में पानी सींचने वाला माली पानी सींचता है । राजा की सेवा सामने रहने वाले करते हैं । सु नर अर्थात संत की सेवा भक्तजन करते हैं, वैसे ही संसार के प्राणियों को महान्१ प्रभु की भक्ति करना चाहिये तभी ठीक रहेगा वा जैसे माली जड़ का सेवक है, वैसे ही संत, राजा, नर सभी अपने मूल के सेवक हैं । 
सदगुरु सांई साधु शब्द, बंदनीक चार्यों ये हद१ । 
रज्जब समझे समझों मांही, इन ऊपर थापण को नाँहिं ॥२०३॥ 
सदगुरु, परमात्मा, संत और संतों के शब्द, ये चारों ही पूजनीयों में सीमा१ के हैं, अर्थात सबसे बड़े हैं समझे हुये साधक इस बात को हृदय में ही समझें, इनके ऊपर स्थापन करने योग्य कोई भी नहीं ।
(क्रमशः)

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