रविवार, 1 दिसंबर 2019

= १९६ =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सबै सयाने कह गये, पहुँचे का घर एक ।*
*दादू मार्ग माहिं ले, तिन की बात अनेक ॥*
==================
साभार ~ @Nirmala Mishra

卐 || ॐ श्री परमात्मने नमः || 卐
.
*अहिंसा।*
.
हाँ, राम, कृष्ण, बुद्ध इत्यादि महापुरुषों ने समाज को आत्मिक पथ पर चलाने के लिए सुधार का जो प्रयास किया, वह भी एक अहिंसा थी। इस चिंतन- पथ में आंतरिक विकारों के साथ बाह्य विरोधी विचारधाराओं को नष्ट करना ही अहिंसा है। नास्तिकता को आस्तिकता में बदलना अहिंसा है। योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार- जो आत्मपथ पर नहीं चलता वह अपनी आत्मा का हत्यारा है, जो महापुरुष नहीं चलाता वह भी हत्यारा है और जो आत्मपथ पर चलने नहीं देते, वे तो सबसे बड़े हत्यारे हैं।
.
समाज का एक वर्ग हमेशा से आत्मपथ का विरोध करता चला आ रहा है। वह कहता है कि ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं है। स्त्री और पुरुष के संयोग से सृष्टि उत्पन्न है- इतना ही सत्य है। अतः खाओ- पियो और मौज करो- जो इस विचारधारावाले हैं, वे आत्मा की हत्या करनेवाले हैं। साथ ही जो रूढ़ियों के पुजारी है, वह भी आपको परमात्मा के स्वरूप से वंचित कर रहे हैं, परमात्मा से दूरी पैदा करनेवाले हैं। उन्हें न मारकर केवल उनका हृदय बदलना भी अहिंसा का एक बहुत बड़ा अंग है।
.
परमदेव परमात्मा के देवत्व से दूरी पैदा करनेवाले आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को नष्ट करने के लिए महापुरुषों ने दोनों तरीके अपनाये। जहां तक हो सका ऐसे लोगों का हृदय- परिवर्तन किया और जो किसी भी प्रकार से सुधारने को तैयार नहीं थे, चिंतन- पथ में व्यवधान उपस्थित कर रहे थे उनका उन्होंने मुलोच्छेदन कर डाला।
.
धर्मप्रचार के लिए शस्त्र के प्रयोग में राम की नकल(समानता) कुछ कबीलों ने की। ईसाइयों ने हृदय- परिवर्तन गौतम बुद्ध से सीखा; किंतु वे इसके बदले सीखा क्या रहे हैं ? मात्र कुरीतियां ! काले- गोरे का अंतर ! क्योंकि परमात्मा की प्राप्ति की विधि को क्रमबद्ध बताने का तथा समाज को उस पथ पर चलाने का मौका न तो अल्लाह के रसूल को ही मिला और न महात्मा ईशा को ही।
.
हृदय- परिवर्तन प्रत्येक महापुरुष के क्षेत्र की वस्तु है; लेकिन तलवार के घाट उतारना, यह अवतार के अधिकार- क्षेत्र की बात है। अवतार भी महापुरुष ही है, आकाश से उतरा कोई विचित्र या काल्पनिक जीव- विशेष नहीं। मनुष्य शरीर से ही साधन करके उन्होंने यह स्थिति पाई है। वस्तुतः प्राप्तिकाल में सभी महापुरुषों को परमात्मा की एक- जैसी अनुभूति मिलती है; किंतु साथ ही समाज के संस्कारों के अनुरूप कुछ कार्यों की जिम्मेदारी भगवान उन्हें सौंप देते हैं, उन्हें विशेषाधिकार संपन्न कर देते हैं।
.
जिस महापुरुष को जिस सीमा तक लोककल्याण करना रहता है उतनी भूमिका(रोल) निभाकर वह संसार के रंगमंच से तिरोहित हो जाता है। यह तो उन प्रभु का चयन है कि किससे कितना कार्य ले। प्राप्ति की स्थिति की दृष्टि से भी सभी महापुरुष समान है; किंतु समाज में उनकी भूमिका के अनुसार महापुरुषों के रहनि अलग-अलग प्रतीत होती है।
.
अवतार चौबीस ही नहीं, अनंत हुए हैं। आपके अंदर भी अवतार संभव है- यदि आत्मानुभूति कर लें और वैसा समाज हो। समाज में उनके कार्यों का आकलन कर हम किसी को छोटा और किसी को बड़ा अवतार मान बैठते हैं; किंतु आंतरिक उपलब्धि की दृष्टि से सभी महापुरुष एक- जैसे हैं।
.
जब आसुरी प्रवृत्तियां चरम सीमा पर पहुंच जाती है, समाज रूढ़िप्रधान हो जाता है, समझाने से भी नहीं समझता, समझना चाहता ही नहीं, उस समय विशेषाधिकारसंपन्न महापुरुष का उदय होता है जिसे पूर्व मनीषियों ने अवतार की संज्ञा दी है। भगवान राम और श्री कृष्ण ने समाज- सुधार के लिए दोनों उपायों का प्रयोग किया। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व को देख असभ्य वनवासी भी धार्मिक हो गए।

🌹🌻🍁🌼🙇‍♂🌼🍁🌻🌹

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें