रविवार, 1 सितंबर 2019

= *उपदेश चेतावनी का अंग ८२(१६१-६४)* =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷 
*जाग रे सब रैण बिहांणी,* 
*जाइ जन्म अंजलि को पाणी ॥*
*घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावै,* 
*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै ॥*
*सूरज चंद कहैं समझाइ,* 
*दिन दिन आयु घटती जाइ ॥*
*सरवर पाणी तरवर छाया,* 
*निशिदिन काल गिरासै काया ॥*
*हंस बटाऊ प्राण पयाना,* 
*दादू आतम राम न जाना ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ पद. १५६)*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*उपदेश चेतावनी का अंग ८२*
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सब जग आता देखिये, रहता कोई नाँहिं ।
जन रज्जब जगदीश भज, समझ देखि मन माँहिं ॥१६१॥
तू विचार करके मन में देख, संपूर्ण जगत् चलता हुआ देखा जाता है, स्थिर कोई भी नहीं है अत: जगदीश्वर का भजन कर ।
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जल तरंग के जीवने, गाफिल१ कहा४ गंवार२ ।
पीछे ही पछिताहुगे, रज्जब राम संभार३ ॥१६२॥
हे मूर्ख२ ! जल तरंग के समान क्षणिक जीवन में भी असावधान१ क्यों४ हो रहा है ? शीघ्र ही राम का भजन३ कर, नहीं तो पीछे पश्चाताप ही करना होगा ।
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प्राण१ पचन२ ह्वै पलक में, छिन माँहिं चलि जाय ।
रज्जब सू५ समयू३ समझ, बहिला४ बार न लाय ॥१६३॥
प्राणी१ पलक में व्यथित२ होता है, क्षण भर में चला जाता है, मनुष्य देह का समय३ बड़ा सुन्दर५ है, यह समझ कर हे वहिर्मुख५ ! वा हे बहिरा४ ! प्रभु में भजन करने में देर मत लगा ।
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पाणी पाणि१न ठाहरै, प्राण पिंड यूं जाणि ।
तो परमारथ पाय जल, बाज कही निज छाणि२ ॥१६४॥
हाथों१ की अंजली में जल नहीं ठहरता, वैसे ही प्राणी शरीर में नहीं ठहरता । अंजली में जल भरते रहें तो जल ठहरता रहेगा, वैसे ही परमार्थ - जल पिलाते रहने से ब्रह्मरूप होकर स्थिर रहेगा । मैने विचार२ करके यह निजी बात कही है ।
(क्रमशः)

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