रविवार, 1 सितंबर 2019

= ३३ =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷


🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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३३ - मन प्रति उपदेश । निसारुक ताल
काहे रे मन राम विसारे, 
मानुष जन्म जाय जिय हारे ॥टेक॥
मात पिता को बन्ध न भाई, 
सब ही स्वप्ना कहा सगाई ॥१॥
तन धन जौबन झूठा जाणी, 
राम हृदय धर सारँग१ प्राणी२ ॥२॥
चँचल चित वित झूठी माया, 
काहे न चेते सो दिन आया ॥३॥
दादू तन मन झूठा कहिये,
राम - चरण गह काहे न रहिये ॥४॥
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मन को उपदेश कर रहे हैं - 
हे मन ! राम को क्यों भूल रहा है ? देख, यह मनुष्य - जन्म भोगों में व्यर्थ ही नष्ट हो रहा है, तू स्वयँ ही इसे हार रहा है । 
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माता - पिता - भाई - बान्धव कोई भी तेरे नहीं हैं । यह सब सँसार स्वप्न ही है । इससे क्या सम्बन्ध बांध रहा है ? 
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शरीर, यौवन और धनादि को मिथ्या समझ कर हृदय में प्राणाधार२ परमेश्वर१ राम का ध्यान धर । 
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अरे चँचल चित्त ! यह द्रव्यादि सभी माया मिथ्या है । जिस दिन इन सबको छोड़ने की इच्छा के बिना भी छोड़ना है, वह मृत्यु का दिन भी समीप आ रहा है फिर तू क्यों नहीं सावधान होता ? 
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हे मन ! यह तन शास्त्र द्वारा मिथ्या ही कहा गया है, तू राम के चरणों को ग्रहण करके क्यों नहीं स्थिर रहता है ?
(क्रमशः)

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