शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू मन सुध साबित आपणा, निश्चल होवे हाथ ।*
*तो इहाँ ही आनन्द है, सदा निरंजन साथ ॥*
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साभार ~ Atul Verma

जगत में हम जो भी खोजते हैं, वह दौड़कर खोजते हैं। इसलिए जगत में जो जितनी तेजी से दौड़ सकता है, उतना सफल होगा। जो दूसरों की लाशों पर से भी दौड़ सकता है, वह और भी ज्यादा सफल होगा। जो पागल होकर दौड़ सकता है, उसकी सफलता सुनिश्चित हो जाएगी, जगत में। जितनी तेजी से दौड़ेंगे, उतना ज्यादा इस जगत में आप सफल हो जाएंगे। लेकिन भीतर आप विक्षिप्त और पागल भी हो जाएंगे। ठीक परमात्मा की तरफ जाने वाली बात बिलकुल दूसरी है। वहां तो जो जितना शांति से खड़ा हो जाता है, उतना ज्यादा सफल हो जाता है।
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जब आप दौड़ते हैं, तो आपका मन भी दौड़ता है। मन दौड़ता है, इसीलिए तो आप दौड़ते हैं। आप तो पीछे जाते हैं मन के, मन बहुत पहले जा चुका होता है। अगर आपको लाख रुपए पाने हैं, तो मन तो पहुंच गया लाख पर, अब आपको दौड़कर यात्रा पूरी कर लेनी है। मन तो पहुंच चुका, अब आप आ जाएं।
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अगर आपको एक बड़ा मकान बनाना है, मन ने बना डाला। अब आप जो और जरूरी काम रह गए करने के, वे कर डालें और वहां पहुंच जाएं। लक्ष्य तो मन पहले ही पा लेता है, फिर शरीर. उसके पीछे घसीटता रहता है। और जब आप बड़े महल में पहुंचते हैं, तब तक आपके मन ने दूसरे बड़े महल आगे बना लिए होते हैं। इसलिए मन आपको कहीं रुकने नहीं देता, दौड़ाता रहता है।
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मन दौड़ता है, इसलिए आप दौड़ते हैं। आपकी दौड़ आपके मन का ही प्रतिफलन है। जब मन ठहर जाता है, तो आप भी ठहर जाते हैं। परमात्मा में जिसे जाना है, उसे संसार से ठीक उलटा उपक्रम पकड़ना पड़ता है। उसे ठहर जाना पड़ता है, उसे रुक जाना पड़ता है।
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निश्चल ध्यान योग का अर्थ है, मन की ऐसी अवस्था, जहां कोई दौड़ नहीं है। मन की ऐसी अवस्था, जहां कोई भविष्य नहीं है। मन की ऐसी अवस्था, जहां कोई लक्ष्य नहीं है। मन की ऐसी अवस्था कि मन कहीं आगे नहीं गया है; यहीं है, अभी, इसी क्षण, कहीं नहीं गया है। इसका नाम है, निश्चल ध्यान योग।
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आमतौर से लोग सोचते हैं, ध्यान का मतलब है, परमात्मा पर ध्यान लगाना। अगर आपने परमात्मा पर ध्यान लगाया, तो परमात्मा तो बहुत दूर है, आपका ध्यान दौड़ेगा; परमात्मा की तरफ दौड़ेगा, लेकिन दौड़ेगा। और जब तक चित्त किसी भी तरफ दौड़ता है, तब तक परमात्मा को नहीं जान सकता। एक बहुत पैराडाक्सिकल, विरोधाभासी बात है।
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गीता दर्शन भाग–5, अध्याय—10
OSHO

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