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*दादू जिन्हें ज्यों कही,*
*तिन्हे त्यों मानी, ज्ञान विचार न कीन्हा ।*
*खोटा खरा जीव परख न जानै,*
*झूठ साच करि लीन्हा ॥*
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साभार ~ Atul Verma
गुरजिएफ ने लिखा है अपने संस्मरणों में कि मेरे पिता ने मरते वक्त मुझसे कहा था—एक छोटी—सी बात, वही मेरे जीवन में बदलाहट बन गई— उन्होंने मरते वक्त मुझसे कहा था कि मेरे पास ! देने को तुझे कुछ भी नहीं है, सिर्फ एक छोटी—सी सलाह है, जिसने मेरी जिंदगी को सोना बना दिया, वह मैं तुझे देता हूं।
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और वह सलाह, यह थी कि जब तुझे कभी कोई गाली दे, तो तू चौबीस घंटे भर बाद जवाब देना; चौबीस घंटे बाद जवाब देना, इसके पहले जवाब मत देना। उससे कह देना कि मैं आऊंगा। चौबीस घंटे का मुझे मौका दें, ताकि मैं सोचूं विचारूं। मैं चौबीस घंटे भर बाद आकर जवाब दे दूंगा।
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गुरजिएफ ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मुझे जवाब देने का मौका कभी नहीं आया। चौबीस घंटे बहुत लंबा वक्त था, इतनी देर जहर टिकता नहीं। वह तत्काल हो जाए, तो हो जाए।
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मगर हम बड़े होशियार लोग हैं। अगर कोई भला काम करना हो, तो हम कहते हैं, जरा सोचेंगे। बुरा काम करना हो, तो हम बड़े तत्काल ! फिर हम कभी नहीं कहते कि सोचेंगे। अगर कोई कहे कि एक दो पैसे दान कर दो, तो हम कहेंगे, सोचेंगे। और कोई एक गाली दे, तो हम कभी नहीं कहते कि जरा सोचेंगे। फिर सोचने का कोई सवाल नहीं है। फिर हम तत्काल ! फिर हमसे ज्यादा त्वरा और तीव्रता में और जल्दी में कोई नहीं होता।
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यह जल्दी क्या है, आपको पता नहीं। यह जल्दी केमिकल है, यह जल्दी रासायनिक है। वह जहर जो आपके खून में छूटा है, वह कहता है, जल्दी करो ! क्योंकि अगर दो क्षण भी चूक गए, तो वह जहर तब तक खून में विलीन हो जाएगा। वह जहर जो आपकी नसों में फैलकर अकड़ गया है, वह कहता है, उठाओ घूंसा और मारो ! क्योंकि अगर नहीं मारा, तो यह जहर तो बेकार चला जाएगा।
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क्रोध जब हो, तब ध्यान का क्षण समझें। आंख बंद कर लें। बीच सड़क पर भी हों, तो वहीं आंख बंद कर, एक किनारे पर बैठकर ध्यान कर लें कि भीतर क्या हो रहा है ! लोग शायद आपको पागल समझें, लेकिन आप पागल नहीं हैं। क्योंकि क्रोध को जो जान लेगा, वह सब पागलपन के ऊपर उठ जाता है। जब कामवासना आपको पकड़े, तब रुक जाएं।
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ध्यान करें उस पर। उस वासना को पहचानें भीतर से, क्या है? कौनसी ऊर्जा भीतर उठकर इतना धक्का दे रही है कि आप पागल हुए जा रहे हैं? तो आप बहुत शीघ्र उस ज्ञान को उपलब्ध हो जाएंगे, जिस जान में ये इंद्रियनिग्रह, मनोनिग्रह सरलता से फलित हो जाते हैं। कृष्ण कहते हैं, वह भी मैं ही हूं।
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गीता दर्शन भाग–5, अध्याय—10
OSHO

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