#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - १/२ =*
.
[यह आद्यक्षरी अन्तर्लापिका का एक भेद है ।(द्र. : अलंकारमंजूषा : पृ.२१)]
*दोहा*
*स्वाति बून्द चातक रटै, मीन न नीर बिन छीन ॥*
*दादू जीयौ रामहित, दुसर भाव न कीन ॥१॥*
[स्वामी श्रीसुन्दरदासजी आगे लिखे आठ दोहे इस विधि से लिखे हैं कि प्रत्येक दोहे के प्रथम पदों के अक्षरों का संकलन करने पर उनसे एक पृथक दोहा निकल आया है । यह भी एक अनुपम काव्यकला है, जो साधारण कवि में नहीं होता । जैसे -]
चातक पक्षी निरन्तर वर्षाॠतु के *स्वा*ति नक्षत्र की प्रथम मेघबिन्दु की आशा लगाये रखता है ।
जल के विना *मी*न(मछली) क्षीण(दुर्बल) होती जाती है ।
हमारे गुरु *श्री दादूदयाल जी* रामनाम का उपदेश जीवन पर्यन्त करते रहे । उनने दूसरा कोई विचार अपने मन में नहीं आने दिया ॥१॥
.
*सम दृष्टि सब आतमा, त्यत्यक्त किये गुण देह ॥*
*कर्म काट लागै नहीं, रिदै बिचार सु येह ॥२॥*
वे सभी प्राणि शरीरों आत्माओं के प्रति समान दृष्टि(विचार) रखते थे ।
उन ने अपने सभी शारीरिक गुणों का त्याग कर दिया था ।
अपने समस्त कर्मबन्धन काट देने के कारण उनके हृदय में शुद्ध विचार ही उद्भुत होते थे ॥२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें