गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

= सुन्दर पदावली(फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - १/२) =

#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - १/२ =* 
[यह आद्यक्षरी अन्तर्लापिका का एक भेद है ।(द्र. : अलंकारमंजूषा : पृ.२१)] 
*दोहा* 
*स्वाति बून्द चातक रटै, मीन न नीर बिन छीन ॥* 
*दादू जीयौ रामहित, दुसर भाव न कीन ॥१॥* 
[स्वामी श्रीसुन्दरदासजी आगे लिखे आठ दोहे इस विधि से लिखे हैं कि प्रत्येक दोहे के प्रथम पदों के अक्षरों का संकलन करने पर उनसे एक पृथक दोहा निकल आया है । यह भी एक अनुपम काव्यकला है, जो साधारण कवि में नहीं होता । जैसे -] 
चातक पक्षी निरन्तर वर्षाॠतु के *स्वा*ति नक्षत्र की प्रथम मेघबिन्दु की आशा लगाये रखता है । 
जल के विना *मी*न(मछली) क्षीण(दुर्बल) होती जाती है । 
हमारे गुरु *श्री दादूदयाल जी* रामनाम का उपदेश जीवन पर्यन्त करते रहे । उनने दूसरा कोई विचार अपने मन में नहीं आने दिया ॥१॥ 
*सम दृष्टि सब आतमा, त्यत्यक्त किये गुण देह ॥* 
*कर्म काट लागै नहीं, रिदै बिचार सु येह ॥२॥* 
वे सभी प्राणि शरीरों आत्माओं के प्रति समान दृष्टि(विचार) रखते थे । 
उन ने अपने सभी शारीरिक गुणों का त्याग कर दिया था । 
अपने समस्त कर्मबन्धन काट देने के कारण उनके हृदय में शुद्ध विचार ही उद्भुत होते थे ॥२॥
(क्रमशः)

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