🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू पंथों पड़ गये, बपुरे बारह बाट ।**इनके संग न जाइये, उलटा अविगत घाट ॥*
==================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
.
*निष्पक्ष मध्य का अंग ८८*
.
जन रज्जब पख१ पैठतों२, पड़ै पिशुनता३ प्राण४ ।
निरपख मिल निर्दोष ह्वै, साधू संत सुजाण ॥४१॥
किसी भी पक्ष१ में प्रवेश२ करते ही प्राणी४ दुष्टता३ में आ पड़ता है और निष्पक्ष ज्ञानी संत से मिलकर प्राणी निर्दोष साधु हो जाता है ।
.
पखापखी मधि पिशुनता, प्राणि हु दुविध द्वन्द ।
जन रज्जब निरपक्ष नर, निर्वैरी निर्द्वन्द ॥४२॥
पक्षापक्षी में दुष्टता आ जाती है, और प्राणी दुविधा द्वारा द्वंद्वों में पड़ जाता है । निष्पक्ष नर निर्वैरी तथा निर्द्वंद्व बना रहता है ।
.
पखापखी में पिशुनता१, निरपख मन निर्वैर ।
मनसा वाचा कर्मना, रज्जब कही न गैर२ ॥४३॥
पक्षापक्षी में दुष्टता१ आ जाती है, निष्पक्ष मन वाला नर मन, वचन, कर्म से निर्वैर रहता है, यह बात मैंने अनुचित२ नहीं कही है ।
.
पाप पुण्य मूरख चतुर, झूठी जाति कुजाति ।
जन रज्जब सोवै१ सबै२, जो न अंधेरी राति ॥४४॥
यदि पक्ष-विपक्ष रूप अंधेरी रात्रि नहीं हो तो अपने अपने स्थान पर पाप, पुण्य, मुर्ख, चतुर, मिथ्या जाति कुजाति आदि सभी२ शोभा१ देते हैं, किन्तु पक्ष-विपक्ष होने से एक दूसरे की शोभा बिगाड़ देते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें