शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

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*सेवक की रक्षा करै, सेवक की प्रतिपाल ।*
*सेवग की वाहर चढै, दादू दीन दयाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ बिनती का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *भक्त* 
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कर्मठी बाई बागर(राजस्थान) गांव निवासी पुरुषोत्तम काँथडया ब्राह्मण की इकलोती पुत्री थी । बाल विधवा हो गई और पितृ कुल तथा पति कुल भी समाप्त हो गये । वह वृन्दावन गई और श्री हित हरिवंश से दीक्षा लेकर भक्ति करने लगी । उसके रूप पर मोहित होकर मथुरा के शासक हसनवेग ने उसे दो दूतियों द्वारा छल कर अपने वश में लाना चाह । 
संत दर्शन के बहाने भक्त भेष धारणी दूतियां उसे अपने स्थान में ले गई । कमरे में बैठा कर बोली - 'संत कहीं चले गये है, आप यहीं बैठे अभी आ जायेंगे ।' ऐसा कह कर हसनवेग को कमरे में भेज दिया । हसनवेग ज्यों ही उसे पकड़ने लगा त्यों ही कर्मठी की प्रार्थना से भगवान सिंह के रूप में प्रगट हो गये । हसनवेग धबरा कर पृथ्वी पर गिर पड़ा और कर्मठी की रक्षा हो गई । 
इससे सूचित होता है कि आपद में भक्त की रक्षा भगवान् करते ही हैं ।
आपदा की रक्षा करे, भक्तों की भगवान ।
करी कर्मठी की तुरंत, हसनवेग से जान ॥३४९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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