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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*व्यर्थ जीवन*
*जतन करै नहीं जीव का, तन मन पवना फेर ।*
*दादू महँगे मोल का, द्वै दोवटी इक सेर ॥३८॥*
इस लोक तथा पर लोक में भोग-ऐश्वर्यों का प्राप्त करने वाले लौकिक वैदिक कर्म विशेष द्वारा अपनी कामना को पूर्ण करते हुए लोग सच्चिदानन्द ब्रह्म को नहीं भजते । वे अपने को तथा दूसरों को ठगने वाले हैं । न साधुसेवा, न लोकसेवा ही करते हैं । उनका जीवन केवल भोजन-आच्छादन में ही पूरा हो जाता है । वे अपनी आत्मा को कभी नहीं भजते ।
योगवासिष्ठ में लिखा है-
“यहाँ लोग आधि-व्याधिमुक्त तथा प्रातःकाल या अभी नाश होने वाले शरीर के लिये प्रयत्न रहते करते हैं, लेकिन आत्मप्राप्ति के लिये कभी यत्न ही नहीं करते ॥३८॥”
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*सफल जीवन*
*दादू रावत राजा राम का, कदे न बिसारै नांव ।*
*आत्मराम संभालिये, तो सुबस काया गांव ॥३९॥*
राजराजेश्वर भगवान् के नाम को कभी मत भूलो । किन्तु हमेशा स्मरण करो । जो राम नाम को भजते हैं, वे धन्य हैं । उनके ग्राम, नाम, देश, वास, जीवन-सभी धन्य हैं । भागवत में लिखा है-
“हे नाथ ! श्रुति रूपी वायु द्वारा लाया गया चरण कमलों के यशरूपी गन्ध को कान के द्वारा सूंघते हैं(अर्थात् सुनते हैं) । भक्ति से जिन्होंने आपके चरणकमलों को पकड़ लिया है, उनके हृदयकमल से आपके श्रीचरण कभी नहीं हटते । क्योंकि वे आपके भक्त हैं ॥
धन, देह, मित्र निमित्तक भय शोक स्पृहा परिभव या विपुल लोभ तभी तक रहता है, जब तक वे आपके अभयप्रद श्रीचरणों को नहीं पकड़ते । और तभी तक उनमें पीड़ा देने वाला अहंकार रहता है जब तक वे आपके चरणों की शरण ग्रहण नहीं करते ॥
सम्पूर्ण अशुभों को नष्ट करने वाली आपकी कथा के प्रसंगो से जो विमुख हो कर क्षणिक कामसुख भोग के लिये लोभ से अभिभूत होकर दीन रहते हुए असत् कर्म करते हैं, निश्चित ही उनके भाग्य ने उनकी बुद्धि को नष्ट कर दिया है ॥३९॥”
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*स्मरण चितावणी*
*दादू अहनिशि सदा शरीर में, हरि चिंतत दिन जाइ ।*
*प्रेम मगन लै लीन मन, अन्तरगति ल्यौ लाइ ॥४०॥*
*निमिष एक न्यारा नहीं, तन मन मंझि समाइ ।*
*एक अंगि लागा रहै, ताको काल न खाइ ॥४१॥*
जो अनन्य चित्त से भगवान् के चरणकमलों को श्रद्धा-प्रेमपूर्वक अपने हृदय कमल में ध्यान करते हैं, उनका शरीर, मन भगवान् के चरणकमलों में ही लीन हो जाता है । और वे अमर बन जाते हैं । गीता में लिखा है-
“जो अनन्य मन से मुझ को नित्य याद करता है, उस योगी के लिये मैं सर्वथा सुलभ हो जाता हूँ । और मुझ को प्राप्त होने के बाद दुःख के घर इस जगत् में जन्म नहीं लेते, और परम सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं ॥४०-४१॥”
(क्रमशः)

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