रविवार, 17 नवंबर 2019

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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *सत्य* 
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कोटा राज्य के गङ्गयचा गांव की दादूपंथी संत भक्तराम जी के दर्शन करने कोटा नरेश गये थे । थोड़ी देर बाद के बाद राजपुरुषों ने राजा से कहा - 'भोजन का समय हो गया है पधारो ।' यह सुन भक्तराम जी ने कहा - 'देखो सामन ज्वार खड़ी है, उसे तोड़कर खाओ और यहां ही ठहरो सांझ को जाना ।' 
राजा आदि ने कहां - 'यह तो बरू है ।' यह सुन भक्तरामजी को चेत हुआ कि अवश्य यह बरू ही है किन्तु मैं तो मिथ्या बोलता नहीं । अनजान में मुझ से यह कहा गया है भगवान से विनय करते हुये बोले -
"बरू बरू सब ही कहें, बरू सू बिसवा बीस ।
भक्त राम की बीनती, ज्वार करो जगदीश ॥"
तत्काल बरू ज्वार हो गया । इससे सूचित होता है कि सत्यवक्ता से स्वाभाविक झूठ निकल जाय, तो भी वह सत्य हो जाता है ।
सहज वचन भी संत का, मृषान होत सुजान ।
भक्तराम बच से बरू, ज्वार भई सत जान ॥६१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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