🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*प्रेम भक्ति दिन दिन बधै, सोई ज्ञान विचार ।*
*दादू आतम शोध कर, मथ कर काढ़या सार ॥*
*काया की संगति तजै, बैठा हरि पद मांहि ।*
*दादू निर्भय ह्वै रहै, कोई गुण व्यापै नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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साभार ~ satsangosho.blogspot.com
हे पार्थ जो पुरुष इस लोक में इस प्रकार चलाए हुए सृष्टि चक्र के अनुसार नहीं बर्तता है(अर्थात शास्त्र के अनुसार कर्मों को नहीं करता है), वह इंद्रियों के सुख को भोगने वाला पाप आयु पुरुष व्यर्थ ही जीता है। परंतु, जो मनुष्य आत्मा ही में प्रीति वाला और आत्मा ही में तृप्त तथा आत्मा में ही संतुष्ट होवे, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है।
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क्योंकि, हम संसार में उस पुरुष का किए जाने से भी कोई प्रयोजन नहीं है और न किए जाने से भी कोई प्रयोजन नहीं है तथा उसका संपूर्ण भूतों में कुछ भी स्वार्थ का संबंध नहीं है। तो भी उसके द्वारा केवल लोक हितार्थ कर्म किए जाते हैं।
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सष्टि के क्रम के अनुसार। श्रीकृष्ण पहली बात कह रहे हैं, सृष्टि के क्रम के अनुसार, इसे समझ लें, तो बाकी बात भी समझ में आ सकेगी। जीवन दो प्रकार से जीया जा सकता है। एक तो सृष्टि के क्रम के प्रतिकूल विरोध में, विद्रोह में। और एक सृष्टि के क्रम के अनुसार सहज, सरल, प्रवाह में। एक जीवन की धारा के प्रतिकूल तैरा जा सकता है और एक धारा में बहा जा सकता है। संक्षिप्त में कहें तो ऐसा कह सकते हैं कि दो तरह के लोग हैं। एक, जो जीवन में धारा से लड़ते हैं, उलटे तैरते हैं। और एक वे, जो धारा के साथ बहते हैं, धारा के साथ एक हो जाते हैं। सृष्टि क्रम के अनुसार दूसरी तरह का व्यक्ति जीता है, जीवन की धारा के साथ, जीवन से लड़ता हुआ नहीं, जीवन के साथ बहता हुआ। धार्मिक व्यक्ति का वही लक्षण है। अधार्मिक व्यक्ति का उसके प्रतिकूल लक्षण है।
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श्री कृष्ण कह रहे हैं की "जीवन के क्रम के अनुसार" का अर्थ है कि सारा जगत हमसे भिन्न नहीं है, हमसे अलग नहीं है। हम उसमें ही पैदा होते हैं और उसी में लीन हो जाते हैं। इसलिए जो व्यक्ति भी इस जगत की जीवन धारा से लड़ता है, वह रुग्ण हो जाता है। जो व्यक्ति भी परिपूर्ण स्वस्थ होना चाहता है, उसे जीवन के क्रम के साथ बिलकुल एक हो जाना चाहिए। इस जीवन के क्रम के आधार पर ही भारत ने जीवन की एक सहज धारणा विकसित की थी। वह मैं आपको कहना चाहूंगा।
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और शास्त्र सम्मत कर्म करने का अर्थ क्या है। श्री कृष्ण जब शास्त्र शब्द का प्रयोग करते हैं, तो वे ठीक वैसे ही करते हैं, जैसे आज हम विज्ञान शब्द का प्रयोग करते हैं। यदि आप एलोपैथिक चिकित्सक के पास जाते हैं, तो हम कहेंगे, आप विज्ञान सम्मत चिकित्सा करवा रहे हैं। और यदि आप किसी नीमहकीम से इलाज करवाने जाते हैं, तो हम कहेंगे, आप विज्ञान सम्मत चिकित्सा नहीं करवा रहे हैं। श्री कृष्ण जब भी कहते हैं शास्त्र सम्मत, तो श्री कृष्ण का अर्थ शास्त्र से यही है। शास्त्र का अर्थ भी गहरे में यही है। उस दिन तक जो भी जाना गया विज्ञान था, उसके द्वारा जो सम्मत कर्म हैं, उस कर्म की ओर वे इशारा कर रहे हैं।
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और जितना विज्ञान हम आज जानते हैं, वह एक अर्थ में अपूर्ण है, पूर्ण नहीं है, खंडित है। हम केवल पदार्थ के संबंध में विज्ञान को जानते हैं, जीवन के संबंध में हमारे पास अभी कोई विज्ञान नहीं है। श्री कृष्ण के सामने एक पूर्ण विज्ञान था। पदार्थ और जीवन को खंड खंड में बांटने वाला नहीं, अखंड इकाई में स्वीकार करने वाला। उस विज्ञान ने जीवन को चार हिस्सों में बांट दिया था। जैसे व्यक्तियों को चार प्रकार में बांट दिया था, ऐसे एक एक व्यक्ति के जीवन को चार हिस्सों में बांट दिया था। वे हिस्से जीवन की धारा के साथ थे।
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पहले हिस्से को हम कहते थे, ब्रह्मचर्य पच्चीस वर्ष। यदि सौ : वर्ष मनुष्य की आयु स्वीकार करें, तो पच्चीस वर्ष का काल ब्रह्मचर्य आश्रम का था। दूसरे पच्चीस वर्ष गृहस्थ आश्रम के थे, तीसरे पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ आश्रम के थे और चौथे पच्चीस वर्ष संन्यास आश्रम के थे। पहले पच्चीस वर्ष जीवन प्रभात के हैं, जब कि ऊर्जा जगती है, शरीर सशक्त होता है, इंद्रियां बलशाली होती हैं, बुद्धि तेजस्वी होती है, जीवन उगता है सुबह। इस पच्चीस वर्ष के जीवन को हमने ब्रह्मचर्य आश्रम कहा था।
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श्री कृष्ण कहते हैं अर्जुन से, जो इस भांति शास्त्र-सम्मत जीवन की कर्म व्यवस्था में प्रवेश करता है, अनुकूल जीवन के बहता है, वह इंद्रियों के सुखों को तो उपलब्ध हो ही जाता है, अंततः आत्मा के आनंद को भी उपलब्ध हो जाता है। और इस जीवन के क्रम में प्रवाहित होकर अंत में जरूर वह ऐसे स्थान पर पहुंच जाता है, जब करने और न करने में कोई भेद नहीं रहता।
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अर्जुन से वे यह कह रहे हैं कि अभी,अभी तू उस स्थान में नहीं है, जहां से तू संन्यस्त हो सके। अभी तू उस जगह नहीं है जीवन के क्रम में, जहां से तू मुक्त हो सके कर्म से। अभी तुझे करने और न करने में समानता नहीं हो सकती। अभी तू यदि न करने को चुनेगा, तो भी चुन।
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