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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१५. निगड बंध) =*
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(२)
*प्रथम बर्ण महिं अर्थ तीनि नीकी बिधि जानहुं ।*
*द्वितीय बर्ण मिलि अर्थ तीन सोऊ पहिचानाहुं ॥*
*त्रितीय बर्ण मिलि अर्थ तीनि ता मध्य कहिज्जे ।*
*चतुर्वर्ण मिलि अर्थ तीनि तिनि कौं सु लहीज्जै ॥*
*पुनि त्यौं पंचम षष्टम सप्तमं
अष्टम नवम सुनहुं पछू ।*
*कहि सुन्दर याकौ अर्थ यह
“करन देत काहू कछू” ॥२३॥*
इस शब्द के प्रथम वर्ण के तीन अर्थ हैं, उनको भली भाँति जान लो । द्वितीय वर्ण के भी तीन अर्थ हैं, उनको भी भली भाँति समझ लो । उसके मध्य में पठित तृतीय वर्ण के भी तीन अर्थ हैं, उनको भी हृदय में बैठा लो । तथा चतुर्थ के मिलने से भी तीन अर्थ निकलते हैं, उनको भी समझ लो । फिर उसी शब्द के पाँचवें, छठे, सातवें, आठवें एवं नवें वर्ण का अर्थ भी समझ लेना चाहिये ।
महाराज *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं – इन सबका सम्मिलित अर्थ होता है – *किसी को कुछ करने दो ।* इस निगडबन्ध के अन्तिम चरण के अन्तिम अंश “क-र-न-दे-त-का-हू-क-छू” में “क-छू” की योजना का कोई विशेष अर्थ नहीं निकल रहा है । प्रारम्भ के सात अक्षरों तक ही अर्थ निकलता है । प्रथम वर्ण महिं अर्थ तीनि=क के तीन अर्थ-जल, अग्नि और सुख ।” “कर” के तीन अर्थ – हाथ, किरण, और हाथी की सूंड । “करन” के तीन अर्थ – राजा करण, इन्द्रिय और देह । “करन दे” के तीन अर्थ करने दे, कर(टैक्स) न दे और “करन दे” कान दे, अर्थात् गुरु-उपदेश को सुन ।
“करन देत” के तीन अर्थ –करण(महादानी करण) देता है । सूर्य या चन्द्रमा “कर”(किरणें) देता है और “करन देत” पतिव्रता स्त्री अपना हाथ पर पुरुष को नहीं देती । “करन देत का” के तीन या अर्थ – क्या करने देता है ? महादानी करण क्या देता है ? और “करन”(कान) देता है क्या ? अर्थात् क्या गुरु वचन या शास्त्र को ध्यान से सुनता है । “करन देत काहू” इस ही प्रकार तीन अर्थ हो सकते हैं । “करन देत काहू” इस ही प्रकार तीन अर्थ हो सकते हैं । “करन देत काहू कछू” इसके भी “कछु” का प्रयोग करने से तीन अर्थ हो सकते हैं । छह सात अक्षरों(क-र-न-दे-त-का-हू) तक अर्थ यथार्थ चलते हैं ।
(क्रमशः)
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