#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
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*आतम ब्रह्म अखंड निरन्तर है अनादि कौ ।*
*जन्म मरन कौ सोच करै नर बृथा बादि कौ ॥*
*स्वप्नै गयौ प्रदेश बहुरि आयौ घर मांहीं ।*
*जब जाग्यौ घर मांहीं गयौ आयौ कहुं नांहीं ॥*
*यहु भ्रमही को भ्रम ऊपनौ भ्रम सब स्वप्न समान है ।*
*कहि सुन्दर ताकौ भ्रम गयौ जाकै निश्चय ज्ञान है ॥२९॥*
तुम्हारा वह ब्रह्मय आत्मा अखण्ड एवं अनादि है । अतः तूँ अपने जन्म-मरण की चिन्ता व्यर्थ ही कर रहा है । तूं स्वप्न में परदेश गया था, पुन: घर लौट आया । जब तुम्हारी निद्रा खुली तो तुमने स्वयं को घर में ही पाया । यह तो तूम्हारा ‘भ्रम को भ्रम’ था । तथा सभी भ्रम मिथ्या स्वप्न के तुल्य होते हैं । अतः श्रीसुन्दरदासजी महाराज का मानना है कि जिसका भ्रम निवृत हो गया वह ज्ञानी हो गया । यह निश्चित है ॥२९॥
(क्रमशः)
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