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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (१९. ज्ञान प्रष्णोत्तर चौकड़ी) =*
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*प्रष्णोत्तर*
*पूछत शिष्य प्रसंग पूछि शंका मति आनै ।*
*तुम कहियत हौ कौन मूढ़ तूं मोहि न जानै ॥*
*किहिं बिधि जानौं तुमहिं देह के कृत मांत देषै ।*
*तो प्रभु देषौं कहा ज्ञान करि आशय पेषै ॥*
*गुरु कहौ ज्ञान ज्यौं मैं सुनौं सुनि करि निश्चय आंनि है ।*
*अब मैं प्रभु उर निश्चय कियौ तो सुन्दर कौ जाँनि ही ॥३०॥*
किसी प्रसंग में गुरु से आश्वासन पाकर शिष्य के जिज्ञासा करने पर गुरुदेव ने बताया कि मूर्ख ! तुम अपने विषय में पूछ रहे हो कि तुम कौन हो ? और तुम मुझे भी नहीं पहचानते ? ठीक ही हैं; तुम कैसे पहचान पाओगे ? तुम्हारी बुद्धि पर देहाध्यास का आवरण पड़ा हुआ है तब तुम उस प्रभु की यथार्थता कैसे पहचान सकते हो ? श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – मैं उसके विषय में तुम्हें जो कुछ बताता हूँ उसे ध्यानपूर्वक अपने मन में बैठा लो । तब तुम उस प्रभु की यथार्थता जान सकोगे ॥३०॥
(क्रमशः)
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