बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग ४०/४३

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य । 
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ 
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त Ram Gopal तपस्वी 
(श्री दादूवाणी ~ ८. निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग) 
.
*॥ पतिव्रत ॥*
*जिसका तिसकौं दीजिये, सांई सन्मुख आइ ।*
*दादू नख शिख सौंप सब, जनि यहु बंट्या जाइ ॥४०॥* 
पतिव्रतनिष्ठ भार्या का शरीर पति का ही माना गया है । ठीक वैसे ही भक्त का शरीर भी भगवान् की सेवा के लिये ही है । अतः मैं आपके शरीर को आपकी सेवा के लिये ही समर्पण कर रहा हूँ । क्योंकि भक्तों की वस्तुमात्र भगवान् के लिये ही होती है । मैं शरीर मन वाणी से आपका ही स्मरण करता हूँ और देवी देवताओं का नहीं और न मैं भोगों को ही चाहता हूँ । किन्तु मैं तो आपका सामीप्य चाहता हूँ सो प्रदान कीजिये ।
.
*सारा दिल सांई सौं राखै, दादू सोई सयान ।*
*जे दिल बंटै आपना, सो सब मूढ़ अयान ॥४१॥*
वह ही बुद्धिमान है जो अपने मन को पूर्णतया दिन रात ब्रह्म में ही लीन रखता है । दूसरी जगह मन को नहीं जाने देता जो भगवान् को छोड़ कर बाह्य विषयों के अर्थों में मन के द्वारा रमण करते हैं, वे मूढ हैं । भागवत् में लिखा है कि- 
“धर्म अर्थ काम मोक्ष का देने वाला यह मनुष्य शरीर अनेक जन्म जन्मान्तरों के पुण्य से प्राप्त हुआ है । अतः यह अति दुर्लभ है । धीर मनुष्य को चाहिये कि वह अपने कल्याण के लिये जल्दी ही यत्न करे । क्योंकि यह अनित्य है और विषय भोग तो दसरे शरीरों में भी सर्वत्र मिल जाते हैं । मोक्ष तो इसी शरीर से प्राप्त होता है ।” 
*॥ विरक्तता ॥*
*दादू सारों सौं दिल तोरि कर, सांई सौं जोड़ै ।*
*सांई सेती जोड़ करि, काहे को तोड़ै ॥४२॥*
स्त्री पुत्र धन कुटुम्ब आदि से अपने मन को लौटा कर भगवान् में लीन करो और फिर किसी भी विषय में मत जाने दो । अन्यथा संसार कूप में अवश्य गिरोगे । भागवत में लिखा है कि- 
“जिन भाग्यहीनों की बुद्धि नष्ट हो गयी और भगवान् की कथा जो सब अशुभ नाशक है । उस कथा से जिनकी इन्द्रियाँ विमुख होकर लोभ में लवलीन हैं । ऐसे मानव लेश मात्र काम सुख के लिये उचित अनुचित का भी कुछ ध्यान नहीं करते और पापमय कर्म करते हैं । जिनसे उनका कुशल नहीं होता ।”
हे उरुक्रम ! भूख प्यास वातपित्तकफ से बार बार दुःखित शीत उष्ण पवन वर्षा से पीडित् कामाग्नि और आपके अत्यन्त कोप से प्रजा को दुःखी देख कर मेरा मन काँप रहा है कि ये लोग आपकी भक्ति क्यों नहीं करते हैं ।
*॥ आन लगनि विभचार ॥*
*साहिब देवै राखणा, सेवक दिल चोरै ।* 
*दादू सब धन साह का, भूला मन थोरै ॥४३॥*
यह मानव शरीर भगवान् की भक्ति के लिये ही मिला है । विषय भोग के लिये नहीं । परन्तु जो अज्ञानी हैं, वे इस शरीर को भौतिक पदार्थों की प्राप्ति के लिये व्यर्थ ही खो रहे हैं । हे साधक ! तेरा यह शरीर रूपी धन परमेश्वर का दिया हुआ है अतः उसी का है । ऐसा मान कर परमात्मा को अर्पण कर दे । भौतिक पदार्थों के लिये भगवान् को मत भूल । क्योंकि ये पदार्थ तो भगवान् की कृपा से भक्त को स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें