मंगलवार, 17 मार्च 2020

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
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*है तो रती, नहीं तो नांहीं, सब कुछ उत्पति होइ ।* 
*हुक्मैं हाजिर सब किया, बूझे बिरला कोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *सत्य*
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सीहा गांव(गुड़गांवा) में पानी की अति आवश्यकता जानकर दादूपंथी संत रामरूपजी ने एक तालाब बनाना आरम्भ किया, उसके मजदूरों को जब मजदूरी देने लगे, तब अपने कार्यकर्ता से कहा कि अमुक शिला के नीचे से रुपया निकाल लाओ, जितनी आवश्यकता होती, उतने ही रुपये वहाँ मिल जाते थे । एक मजदूर को लोभ हुआ उसने जिस-जिस शिला के निचे से रुपया निकालते देखा था तथा अन्य भी कई शिलाएँ रात को खोदकर देखी, किन्तु कुछ न मिला । अबकी बार मजदूरी चुकाते समय रामरूपजी ने शिलाएँ खोदने वाले को कहा - तू एक ओर बैठ जा, तुझे पीछे मिलेगी ।" सबको देने के बाद रामरूपजी ने कार्यकर्ताओं से कहा - 'इसे दुगनी मजदूरी दो, कारण इसने दिन में तालाब खोदा है और रात को शिलाएँ ।' पूछने पर भेद जानकर सब लोग संत को धन्यवाद देने लगे । यह तालाब बहुत ही सुन्दर पक्का बना हुआ है । पानी सदा रहता है । रामरूपजी का वचन मिथ्या कभी नहीं होता था । अब तक भी रामरूपजी की समाधि पर होली के समय मेला लगता है । लोगों की कामनाएं उनके भाव के अनुसार पूर्ण होती हैं ।
सिद्ध संत जन की गिरा, मिथ्या नहिं हो पाय ।
रामरूप जहँ की कहें, तहँ ही धन मिल जाय ॥६२॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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