मंगलवार, 17 मार्च 2020

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*सुफल वृक्ष परमार्थी, सुख देवै फल फूल ।* 
*दादू ऊपर बैस कर, निगुणा काटै मूल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *दया*
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दादूपंथी सैनिक नागों की जमात उदयपुर(जयपुर) के संत हीरादासजी विचरते हुये कसूर(पंजाब) में जाकर रहने लगे थे । वहां उनकी प्रतिष्ठा से दुखी होकर उनके साथ शत्रुता करने वाले हरिहर नामक वैरागी ने उन्हें मरवाने के लिये चार यवन भेजे । जब ये हीरादासजी के आश्रम पर पहुँचे तो देखा कि उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े हुये अलग अलग पड़े हैं । यह देख कर वे पीछे लौट पड़े । तब हीरादासजी ने अपने अपने शरीर को योग शक्ति से ठीक बनाकर तुरन्त आवाज दी - क्यों जा रहे हो ? हीरादासजी को काट काट कर जाओ । 
चारो यवन भयभीत होकर चरणों मे जा पड़े और हरिहर की सब कथा सुना दी । फिर कुछ दिन बाद राजा रणजीतसिंह उनके पास आये और सवा लाख का पट्टा देने लगे । हीरादासजी ने कहा - 'यह सब हरिहर वैरागी को दे दो, रणजीतसिंह ने सब तो नहीं दिया किन्तु सन्तों के कहने से हरिहर को कुछ दे दिया । देखो संतों की दया-मारने वाले को भी जीविका दिलवाई ।
करें शत्रु पर भी दया, यह संतन की रीति ।
करी हरिहर पर दया, हीरादास सप्रिति ॥१३५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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