रविवार, 15 मार्च 2020

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*दादू हौं बलिहारी सुरति की, सबकी करै सँभाल ।* 
*कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्‍वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *दृढ़ता*
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नारनौल में एक अग्रवाल वैश्य परिवार है, जो करीब ढाई सौ बर्षो से सन्त दादूजी को अपना इष्ट मानता आ रहा है । इस कारण वह "दादू" नाम से विख्यात है । उसी परिवार के एक महानुभाव का नियम था कि - श्री दादूवाणी के परचा तथा विनती के अंग का पाठ करते समय न किसी से बोलना तथा उठना । वर्षाकाल था, नगर के समीप की बरसाती नदी का पानी चढ रहा था । 
उपर्युक महानुभाव का ८/१० वर्ष का पुत्र नदी में बह गया, लोगों ने दौड़कर 'श्री दादू मंदिर' में नित्य नियम करते हुये बालक के पिता को सूचना दी, किन्तु अपने लडले लाल का नदी में बहना सुनकर भी अपने नियम से नहीं डिगे । बैठे-बैठे पाठ करते ही रहे । फिर पाठ पूर्ण होते ही उठकर चले ही थे कि सूचना मिली- लड़का कुछ दूर जाकर स्वयं ही नदी तट आ गया है और जीवित है । इससे ज्ञात होता है कि भजनादि नियम की दृढ़ता में अन्त में हानि नहीं होती ।
भजन-नियम में दृढ़ रहे, अन्त हानि कुछ नांहि ।
दादू भक्त का सूत सरित, बहा मरा नहिं मांहि ॥४९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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