मंगलवार, 3 मार्च 2020

*२. स्मरण का अंग ~ ८९/९२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*पंडित श्री जगजीवनदास जी की अनभै वाणी*
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२. स्मरण का अंग ~ ८९/९२*
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सुमिरन सकल सरीर का, कुसमल३ काटै पाप ।
रोंम रोंम रसना रटै, जगजीवन सो जाप ॥८९॥
संत कहते हैं सारा शरीर एकाग्र होकर सिमरण करे तो सारे पाप दोष मिट जाते हैं। और रोम रोम जिह्वा बन ईश्वर को पुकारती है वह ही जप है।
(३. कुसमल-कल्मष{पाप})
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करि करि सुमिरन रांम का, काया कुसमल काटि ।
जगजीवन तहां नहाइये, तिरवेणी४ के घाटि ॥९०॥
संत जगजीवन दास जी महाराज कहते हैं कि राम नाम का सिमरण करने से काया के सारे दोष मैल कट जाते हैं अतः प्रभु जीव व भजन इस त्रिवेणी के घाट पर ही ये सब होगा अतःवही आत्म शुद्धि करे।
(४. तिरवेणी-इडा, पिंगला एवं सुषुम्ना-इन तीन का समन्वय ही ‘त्रिवेणी’ कहलाता है)
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एक तार५ सुमिरन करै, विष जल त्यागै काढि ।
जगजीवन सो ऊबरै, सुक्रित६ की कर बाडि७॥९१॥
संत कहते हैं कि जो व्यवधान रहित भजन करते हैं वे जन विषय रुपी विष को त्याग देते हैं और सत्कर्मों के सहारे से पार उतर जाते हैं।
(५. एकतार-सतत{निरंतर}) (६. सुक्रित = सत्कर्म) (७. बाडि-खेत की रक्षा के लिये बनाया गया कँटीले झाड़ या बाँस आदि का सर से ऊँचा घेरा, जिस से अनचाहा प्राणी खेत में न जा सके)
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सुमिरन करि करि सुरति८ सों, बिसर गई सब आंन९ ।
जगजीवन रस रहि गया, निरगुण का निज ग्यांन ॥९२॥
संत कहते हैं कि स्मरण करते करते लोक मर्यादा भूल गये सिर्फ भजन का आनंद रह गया यही निर्गुण का ज्ञान है। (८. सुरति-स्मृति) (९. आंन-अन्य बातें)
(क्रमशः)

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