सोमवार, 16 मार्च 2020

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*सतगुरु संतों की यह रीत, आत्म भाव सौं राखैं प्रीत ।* 
*ना को बैरी ना को मीत, दादू राम मिलन की चीत ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ दया निर्वैरता का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *दया*
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दया करे से इष्ट की, कृपा सहज हो जाय ।
मक्का सुरसा में मिला, पचास कोस पर आय ॥१३२॥
एक तपस्विनी मक्का जा रही थी । एक वन में एक कूप पर व्याइ हुई भूखी प्यासी कुतिया को देखकर उसे दया आ गई । आप भूखी रहकर अपनी रोटी उसे खिला दी और शिर के केश काटकर उनकी रस्सी बनाकर तथा अपनी धोती की झोली बनाकर उससे पानी निकालकर कुतिया को पिलाया । इसी पुण्य से मक्का का अधिपति सुर(देवता) उसके स्वागत के लिये ५० कोस दूरी पर उसे सामने आया । कहा भी है --
"शिर के केश उतार कर, दिया कुती को नीर ।
पचास कोस मक्का चला, देख दया कर वीर ।"
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^

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