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*दादू जब ही साधु सताइये, तब ही ऊँघ पलट ।*
*आकाश धँसै, धरती खिसै, तीनों लोक गरक ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निंदा का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु,* *अतिथि*
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अतिथि अनादर किये से, भला न होत अन्त ।
पट्टण परले हो गई, कोपा धुंधलि संत ॥३१॥
धुन्धलीनाथ ने पट्टण गांव में १२ वर्ष की समाधि लगाई थी उनका शिष्य गांव में भिक्षा को जाता तब गांव के लोग भिक्षा न देकर हँसी करते थे । एक कुम्हारी ने कुछ दिन रोटी दी, फिर कहा - मैं गरीब हूँ, १२ वर्ष तक आपको पूरा भोजन न दे सकूंगी । आप सुखी लकड़ियाँ लाकर बेच के उनके पैसों का अन्न मुझे लाकर ला दिया करें, अन्य सब मैं करूंगी । नाथ ने वैसा ही किया, १२ वर्ष पूरे हो गये।
धुन्धलीनाथ ने समाधि खोली और एक दिन स्वंय गये किसी ने भी भिक्षा न दी, अन्त में कुम्हारी के घर आये, उसने रोटी दी । नाथजी ने आश्रम पर जाकर शिष्य से पूछा - तेरे १२ वर्ष कैसे निकले ? शिष्य ने सब सत्य सुना दिया । नाथजी ने शिष्य से कहा - उस कुम्हारी से कह दे कि वह शीध्र ही सपरिवार पट्टण की सीमा से बाहर हो जाय । "पट्टण उलट जाय" योगी के ऐसा कहते ही पट्टण पलट कर पृथ्वी में मिल गया ।
दोहा -
यथा शक्ति सबही करें, अतिथिन का सत्कार ।
किया अनादर पाप हो, कहते व्यास पुकार ॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
^^^^^^^//सत्य राम सा//^^^^^^^
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